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जितना चाही गुनगुनाई-बिना दक्षिणा चढ़ाई कउनो काम ना हो पाई ...

ऊका है ना हमरी तो बक बक करै की आदत्वा होइ गवि है तबहि जऊ दिखत है वो बक देवत है कउनो को बुरा लागे हमरी बला से 

ये सच है पुलिस जागती है तो हम चैन की नींद सोते है ये भी कटु सत्य है मौका मिलने पर पुलिस के चन्द कारिंदे कमाई का कोई मौका नही चूकते है कैसे ये भी आपको बताते है दो बाइक सवारों को एक दरोगा जी उठा लाए पूछताछ में मालूम पड़े की दो में एक कई मुकदमो में आरोपी है दूसरा साफ सुथरी छवि का है बस फिर क्या था पुलिस की जैसे चांदी हो गई लगे उस शरीफ को डराने धमकाने उठाकर उसे भी साथी समेत हवालात में ठूस दिए इस बारे में जब परिजनों को सूचना हुई तो वो क्षेत्र के सभ्रांत लोगो से अपने बेगुनाह पुत्र की रिहाई के लिए हाथ जोड़कर विनती करने लगे मामला समझने पर उन लोगो ने उस थाना क्षेत्र में रहने वाले एक सभ्य व्यक्ति को पूरा प्रकरण बताया और निर्दोष युवक को छुड़ाने के लिए कहा थाने में अंध पकड़ विश्वास होने के कारण वो जनाब एक दरोगा जी से मिलते है दारोगा जी किसी और दरोगा का मामला बताइकर गेंद दूसरे पाले में डाल देते है फिर वो बेचारे दूसरे दरोगा जी से मिलते है दरोगा जी उनसे पूरा मामला समझते हैं फिर उन महाशय से कहते है कि हम तो उसे जेल ही भेजते अब तुम आ गए हो तो इसको हल्की फुल्की में छोड़ देंगे लेकिन कब समय ना बताएंगे बेचारे सभ्य पुरुष चुपचाप इतना सा मुह लेकर सारा माजरा अपने मित्र को बताते है मित्र के सारा माजरा समझ मे आया तत्काल क्षेत्रीय दलालो को फोन लगाया दलालो ने ऐसा किया चमत्कार रातो रात युवक को आरोप मुक्त कर थाने से किया पार 

सुबह अपनी जिज्ञाषा दूर करने के लिए सभ्य पुरुष थाने पहुचे तो मालूम हुआ कि एक युवक जिस पर कई मुकदमे थे उसे जेल का रास्ता दिखा दिया गया वही दूसरे वाले को दलालो ने छुड़ा दिया मामले को सही से समझने के लिए सभ्य पुरुष फिर से दरोगा जी को पकड़े दरोगा जी बोले मेरे हाथ मे मामला नही था थानां अध्यक्ष के चहेतो ने मामला रफा दफा करा दिया अब सभ्य पुरुष और अचंभित हो गए उन्होंने रात वाले दोस्त को फोन घुमाया उधर से जवाब आया तुम्हारे क्षेत्र में पुलिस पर दलालो का जादू चढ़ा है देखते ही देखते काम करा दिए है इतने से चमत्कार करने के एवज में दलालो ने पार्टी से 12 हजार रु0 उतार लिए है ये जानकर सभ्य पुरुष के हँसी आई और सोचने लगे अधिकारी ये कैसा सभ्रांत नागरिक का ढोंग रचाई अभी भी थानों मा बिना दक्षिणा चढाई कोई भी काम हो ना पाई,कहने का तातपर्य मात्र इतना है कि पुलिस हमारी मित्र तो है पर उस मित्रता की परिभाषा व्यक्ति के रसूख़ अनुसार निर्धारित है,आगे से जब भी ईश्वर न करे कोई दुख परेशानी पुलिस विभाग संबंधित आन पड़े तो मन और मस्तिष्क दोनों की आंखे खोल कर ही थाने पधारें मित्र पुलिस के समक्ष या तो बड़ी रसूख़ के संग या किसी पुलिस मित्र के संग,समझ तो गये ही होगें न। 

ऊका है ना हमरी तो बक बक करै की आदत्वा होइ गवि है तबहि जऊ दिखत है वो बक देवत है कउनो को बुरा लागे हमरी बला से

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