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पोल खोल न्यूज़ ने जायरीन के लिए किया पानी शरबत का इंतिज़ाम ...

विशेष है कानपुर के मोहर्रम

मोहर्रम इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार इस्लामी नव वर्ष का पहला महीना। इस्लामी मान्यताओं के अनुसार पूरे विश्व में इस्लाम के मानने वाले (मुसलमानों) के लिए नबी करीम सल्लल्लाहु अल्लायी वासलल्लम हज़रत मोहम्मद साहब के कुनबे (खानदान) की इस्लाम अल्लाह की राह में दी गई शहादत की याद में शिया सुन्नी मसलख द्वारा भिन्न भिन्न धार्मिक अनुष्ठानों मान्यताओं रीतिरिवाज़ों के साथ मनाया जाता है। लगभग विश्व के हर एक शहर जहाँ इस्लाम को मानने वाले निवास करते है वहाँ कर्बला की स्थापना उनके द्वारा की जाती है।जबकि इराक का कर्बला शहर प्रमुख रूप से उन तमाम शहीदाने दीन की इस्लाम के लिए दी गई शहादतों का गवाह है। भारत में भी लगभग हर शहर में मान्यताओं अनुसार कर्बला है।जहां अधिकतर शिया हज़रात का क़ब्रिस्तान होता है।

 कर्बला आने जाने वाले जायरीन के लिए पोल खोल न्यूज़ टीम ने किया पानी व शरबत का इंतिज़ाम

कानपुर:हर वर्ष इस्लामिक नया साल मोहर्रम उर्दू कि 1 तारीक से 10 तारीक इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों कि याद मे मुस्लिम समुदाय के लोग ताजीया व जुलूस निकाल कर मनाते है मुस्लिम समुदाय के लोग अपने अपने क्षेत्र मे बने इमामबाड़े मे ताजीया रखते है जिसमें पूरे 9 दिन इमामबाडो पर फातीया होती है लोग मन्नतें मांगते है और फ़िर मोहर्रम कि 10 तारीक क़ो वही ताजीया क़ो लें जाकर दफ़ना देते है इसी कड़ी मे आज कर्बला आने जाने वाले जायरीनो के लिए पोल खोल न्यूज़ टीम द्वारा पानी व शरबत का इंतिज़ाम किया जिसमें मुख्य रूप से इस्लाम ख़ान अश्वनी कुमार दिलशाद अहमद, रोशन राठौर शहर दायरा न्यूज़ से अमित कश्यप आदि मौजूद रहें॥ 

क्या है मोहर्रम और क्यो मनाया जाता है 

मुहर्रम इस्‍लामी महीना है और इससे इस्‍लाम धर्म के नए साल की शुरुआत होती है लेकिन 10वें मुहर्रम को हजरत इमाम हुसैन की याद में मुस्लिम शिया हज़रात मातम मनाते हैं। मान्‍यता है कि इस महीने की 10 तारीख को इमाम हुसैन की शहादत हुई थी, जिसके चलते इस दिन को रोज-ए-आशुरा कहते हैं। मुहर्रम का यह सबसे अहम दिन माना गया है। इस दिन ताज़ियो को इमामबाड़ों से रुख्सत कर कर्बला में ज़मींदोज़ किया जाता है। साथ ही पूरे विश्व का एक मात्र पैगी जुलुस भी सम्पन्न कर पैगी(आस्था के तौर पर मन्नत मांग मोहर्रम के 10 दिन निशान-ए-पैग के साथ भ्रमण करने वाले) भी अपनी अपनी क़मरबंदी खोलते है। शिया हज़रात द्वारा मातम (छमा याचना/शोक प्रकट) भी की जाती है। कानपुर विश्व का एक मात्र शहर है जहाँ का मोहर्रम देखने दूर दूर से लोग आते है। जुलूस निकालकर हुसैन की शहादत को याद किया जाता है।9वें 10वें मुहर्रम पर रोज़ा रखने की भी परंपरा है। इस बार मुहर्रम का महीना 01 सितंबर से 28 सितंबर तक है लेकिन 10वां मुहर्रम सबसे खास है। मान्‍यता है कि 10वें मोहर्रम के दिन ही इस्‍लाम की रक्षा के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपने प्राण त्‍याग दिए थे।

क्‍यों मनाया जाता है मुहर्रम

इस्‍लामी मान्‍यताओं के अनुसार इराक में यजीद नाम का जालिम बादशाह इंसानियत का दुश्मन था। यजीद खुद को खलीफा मानता था, लेकिन अल्‍लाह पर उसका कोई विश्‍वास नहीं था। वह चाहता था कि हजरत इमाम हुसैन उसके खेमे में शामिल हो जाएं। लेकिन हुसैन को यह मंजूर नहीं था और उन्‍होंने यजीद के विरुद्ध जंग का ऐलान कर दिया था। पैगंबर-ए इस्‍लाम हजरत मोहम्‍मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बला में परिवार और दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था। जिस महीने हुसैन और उनके परिवार को शहीद किया गया था।वह मुहर्रम का ही महीना था।

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