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गिरवीं पड़ा ज़मीर ग्राम प्रधान का रसूख़ की हनक के तले दबा विभाग ...

जानवर ही तो है जब तुम्हारा नंबर आये तब देखेगें

न सुनी है न सुनेंगे जहाँ मन आए शिकायत कर दो। यह कोई फ़िल्मी डायलॉग यह भ्रष्टाचार की कार्यशाला अर्थात सरकारी विभाग के बाबू के शब्द नही बल्कि अपनी समस्या का समाधन के लिए रोते बिलखते गाँव भैला मऊ के निवासियों को उनके ग्राम प्रधान का दो टूक जवाब है। जवाब ऐसा हो भी क्यों नही प्रधान जी के रसूख़ की हनक तो बाकी से ख़ाकी तक नज़र आती है। जिसका उदाहरण गाँव की दुर्दशा और वहाँ के निवासियों की प्रतिदिन बढ़ती समस्या का निवारण तो बहुत दूर की बात है कोई उनकी सुनने को भी तैयार नही।

एक नज़र समस्या पर

बीते कई महीनों से भैला मऊ के निवासियों के पालतू पशुओं की आकस्मिक मृत्यु होना। गाँव वालो के पालतू पशुओं की मृत्यु का कारण एक श्रापित तालाब है जो कि धीरे धीरे पूरे गाँव के पशुओं को काल के गाल में लेता जा रहा है। जिसमे पानी की तो कोई कमी नही परंतु तलाब का राक्षक जो कुछ ही दूर पर बैठा रहता है साफ़  इशारा करता है जिसने पिया फिर वह नही जिया। गाँव के निवासी तो यह इशारा समझ चुके है परंतु जानवर तो जानवर उन के लिए तो क्या अक्षर क्या इशारा बस तालाब पर पानी पिया नही तालाब के राक्षस ने उनको अपना भोजन बनाया नही।

बात मुद्दे की

आप विचार कर रहे होंगे आखिर माजरा क्या है तालाब पशु गाँव राक्षस मृत्यु आज के समय में कैसी अंधविश्वास की बाते कर रहा हूं मैं तो हम आप को बताते है पूरा माजरा क्या है भौति के निकट थाना सचेंडी अंतर्गत आने वाला एक छोटा सा गाँव भैला मऊ जिस के निवासियों की चिंता का विषय बन चुका है एक तालाब जिसका पानी पीने से मर चुके है कई बेज़ुबान पशु जो कि गाँव वालों की जीविका का एक साधन भी है। तालाब का पानी विगत कई महीनों से ज़हरीला हो गया है जिस का कारण प्रीमियम नामक एक साबुन कंपनी है। जी हाँ साबुन उत्पादक कंपनी के द्वारा छोड़ा जा रहा केमिकल युक्त  गंदा पानी जो कि पनाले द्वारा गाँव के इस तालाब में जमा होता रहता है जहाँ गाँव के पशु पानी पीते है और गाँव वाले आँसू क्योंकि न तो कोई उनकी समस्या का समाधान ढूढ़ रहा है न तो मरते पशुओं का किसी प्रकार का कोई मुवावजा ही उनको मिल रहा है। सारे दरवाज़ों पर उनके द्वारा दस्तक दी जा चुकी है पर हर जगह से खाली हाथ लौटना तो गरीब अपनी क़िस्मत में लिखा कर आया है सरकार तो सिर्फ अमीरों की जो सुनती है।

बिक चुका ज़मीर

"बिन मांगे मिले मोती मांगे मिले न भीख" यह मुहावरा गाँव की वृद्धा द्वारा अपने द्वारा चुने गए ग्रामप्रधान को समर्पित है जिस का अर्थ उनकी भाषा में "अबकी चुनाव होन देब बोट नाहि भीख भी नाहि मिलये प्रधान का"। इतना क्रोध किसी जनप्रतिनिधि के लिए उसके कार्यक्षेत्र की जनता में तो मामला तो गम्भीर है। पता करने पर लोगो द्वारा बताया गया कि ग्राम प्रधान राजू यादव गाँव वालो की न सुन साबुन कंपनी के साबुन के झाग का मज़ा ले रहे है अपने ज़मीर का सौदा कर जनता मरे या हलाकान हो उनकी बला से। संबंधित थाने का रवैया भी संदेहास्पद है क्योंकि गाँव वालों के अनुसार थाने पर भी सूचना दी गई पर कार्यवाही के नाम पर कुछ नही जिस की वजह क्या है कुछ कह नही सकते क्योकि "ये जो पब्लिक है सब जानती है"।

ग्राम प्रधान हाज़िर हो

ग्राम प्रधान से जब हमारे द्वारा गाँव की जनता की समस्याओं के संबंध मे पूछा गया तो वह पहली कक्षा के छात्र के भाति पहाड़ा पड़ते नज़र आये नही कैसे पता नही बताया नही अवश्य आदि जितने भी शब्दो का प्रयोग संभव था उनके द्वारा किया गया परंतु पहाड़ा जो जनता और हम सुनना चाहते थे वह प्रधान जी को याद ही नही था अर्थात मुद्दे की बात अपना दायित्व सब कागज़ के टुकड़ों के भार के नीचे दब चुका है।

पिछली रिपोर्ट

बताते चले बीते दिनों गीता देवी नामक एक वृद्धा की भैंस तालाब का प्रदूषित पानी पीने से मर गई थी। प्रधान एवं सम्बंधित थाने को सूचना देने के पश्चात भी, जो कि तीन दिन तक उसही तालाब के किनारे पड़ी सड़ती रही जिसको गाँव वालों द्वारा किसी भी प्रकार की कार्यवाही न होते देख निकट ही गड्ढा खोद गाड़ने की तैयारी भी कर ली गई थी परंतु हमारी टीम को सूचना प्राप्त होते ही हमारे द्वारा संबंधित व्यक्तियों से सम्पर्क कर क्षेत्रीय प्रशासन की निगरानी में सरकारी पशुचिकित्सक के पास पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया था जिस के आधार पर यह स्पष्ट हो सके कि आखिर सच्चाई क्या है परंतु एक सप्तहा से भी अधिक का समय बीत जाने के पश्चात भी न तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट का कुछ पता है न ही गाँव की समस्या का कोई समाधान हुआ है। जिस का क्या कारण है अभी कुछ कहना ठीक नही होगा परंतु हम दृढ़निश्चित है कि जब तक गांव और उसके निवासियों को इंसाफ नही मिल जाता हमारा कलम नही रुकेगा।

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