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पत्थरों पर धार से तैयार हुए थे औजार ...

 पुरातत्व विभाग के शोध से हुआ खुलासा

हमीरपुर में मिले 50 हजार साल पुराने औजार और हथियार। बुंदेली भूगर्भ में छिपा है पुरातन सभ्यता का भी इतिहास। बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले में आदि काल के अवशेष मौजूद हैं। जमीन की खुदाई में पत्थरों से तैयार किए गए औजार और हथियारों के ऐसे हिस्से मिले हैं, जिनकी उम्र 50 हजार साल पुरानी मानी जा रही है। पूर्व में इन्हें 10 हजार साल पुराना प्राचीन समझा गया था। इनके काल के सही आकलन के लिए विशेषज्ञों की टीम अध्ययन और शोध में लगी है। 

हमीरपुर के भूगर्भ में अतीत की समृद्ध कहानियों के रहस्य से परदा हटा पुरातत्व विभाग के शोध, सर्वेक्षण और अध्ययन से। अभी तक के अध्ययन में इस इलाके में आदिमानव की सक्रियता के संकेत मिले हैं। काम में लगी विशेषज्ञ टीम ने हमीरपुर के गोहांड विकासखंड को सबसे महत्वपूर्ण माना है। 

बुंदेलखंड के क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ. एसके दुबे बताते हैं कि 50 हजार वर्ष पूर्व यह पूरा इलाका पानी में डूबा (कछार) था। घने जंगलों के बीच पानी का भंडार होने से जानवरों की मौजूदगी रहती थी। भूख मिटाने के लिए आदि मानव यहां शिकार करने जुटते थे। खुदाई में मिले औजार भी वैसे ही हैं, जिनका इस्तेमाल आदिमानव काल में जानवरों को निशाना बनाने के लिए किया जाता था। कुछ जगह पुरातन काल के मिट्टी के बर्तन भी मिले हैं। इसी तरह के औजार कुछ वर्ष पूर्व कालपी में यमुना नदी के किनारे भी मिल चुके हैं। पुरातत्व विभाग भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार दोनों जिलों के आपसी संबंध तलाशने के लिए अध्ययनरत है। 

पत्थरों पर धार से तैयार हुए थे औजार

गोहांड विकास खंड के दगवां, मुसाही मौजा, चिकासी, बरौली खरका, चंदवारी डांडा, घुरौली आदि गांवों में मिट्टी की ऊपरी सतह में ही नुकीले और धारदार पत्थर के औजार मिले हैं। ऐसे औजार 50 हजार वर्ष पूर्व पाषाण युग में ही प्रचलित थे। इनमें जानवर की खाल निकालने वाला औजार खुरचनी और जानवर पर हमलाकर उसे घायल करने वाला औजार बेधक (तीरनुमा) शामिल है। इन्हें नदियों के भारी पत्थर तराश कर और धार देकर तैयार किया जाता था।
 

तीन हजार वर्ष पुराना है हमीरपुर के गांवों का इतिहास 

पुरातत्व विभाग का अनुमान बताता है कि हमीरपुर में गांवों का इतिहास महज 3000 वर्ष पुराना है। इसके आसपास के इलाके यानी बुंदेलखंड के सैकड़ों किलोमीटर क्षेत्र में इंसानी बस्तियां बहुत पहले ही बस चुकी थीं। इसके पीछे हमीरपुर जिले की जटिल भौगोलिक स्थिति को कारण माना जाता है।  

बुंदेलखंड के क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ. एसके दुबे बताते हैं कि डूब क्षेत्रों में मानव सभ्यता का विकास देरी से हुआ। चूंकि हमीरपुर के समूचे भूभाग हजारों वर्षों तक पानी था, लिहाजा इंसानी बसावट का मौका बहुत बाद में आया। जिले (हमीरपुर) की आबादी का छितराया हुआ स्वरूप भी इसकी पुष्टि करता है। अलग-अलग क्षेत्रों में गांवों की बसावट में 500 से 1000 वर्ष का अंतर पाया जा रहा है। कुछ गांव 3000 वर्ष पूर्व बसे तो कुछ एक हजार वर्ष पूर्व ही अस्तित्व में आए। यही वजह है कि हमीरपुर जिले में आज भी गांवों के बीच असमान दूरी देखने को मिलती है।  

ऐसे हुई शोध की शुरुआत

 डॉ. एसके दुबे बताते हैं कि वर्ष 1960 में बनारस विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पीसी पंत यहां एक शोध के लिए आए थे। तब हमीरपुर के पनवाड़ी रोड स्थित नकरा गांव में पहली बार नव पाषाण काल का औजार मिला था। इसके बाद ही पूरे बुंदेलखंड में मानव सभ्यता के विकास और आदि मानव की उपस्थिति पर अध्ययन शुरू हुआ। यह जिला प्राचीन सभ्यताओं से भरा हुआ है। समय पर इसका अध्ययन हो गया होता तो पुरातत्व के साथ पर्यटन का महत्व इलाके के विकास में मजबूत क़ड़ी बन जाता।

हर वर्ष एक विकास खंड का अध्ययन

 पुरातत्व विभाग समूचे बुंदेलखंड क्षेत्र में वर्षों से शोध और सर्वेक्षण कार्य कर रहा है। हर वर्ष एक विकास खंड (ब्लॉक) के सभी गांवों का पुरातात्विक नजरिये से अध्ययन किया जाता है। हमीरपुर के तीन विकास खंडों का अध्ययन हो चुका है। अगले वर्ष किसी नए विकास खंड का अध्ययन किया जाएगा। ये शोध और सर्वेक्षण उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग के निदेशक एके सिंह की अगुवाई में हो रहे हैं।

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