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आर्थिक मंदी बरसात के कारण इत्र कारोबार में आई 20 फीसदी कमी ...

400 करोड़ का इत्र हर साल पान मसाला उद्योग में खपाया जाता

कन्नौजी इत्र की खुशबू पर भी मंदी का असर है। घरेलू और विदेशी व्यापार करीब 20-20 फीसदी घटा है। मंदी के दौर के बीच बारिश, बाढ़ ने हालात को और जटिल बना दिया। बिहार में पान मसाला पर पाबंदी ने भी तगड़ा झटका दिया है।

वाणिज्यकर के आंकड़ों के मुताबिक भी कन्नौज में इत्र व्यापार सिकुड़ रहा है। कन्नौज में इत्र बनाने वाली छोटी-बड़ी करीब 250 इकाइयां हैं। ये इन दिनों मंदी के दौर से गुजर रही हैं। विदेशी बाजार में करीब 20 फीसदी कमी आई है। इत्र उद्यमी इसके पीछे की वजह ग्लोबल मंदी को बता रहे हैं। पिछले तीन महीनों में विदेशों से करीब 20 करोड़ रुपये के आर्डर कम मिले हैं। यानी तीन महीनों में ही इस उद्योग को करीब 20 करोड़ का झटका लगा है। घरेलू बाजार में पान मसाला में इत्र की सबसे ज्यादा खपत है। जानकारों के मुताबिक लगभग 400 करोड़ का इत्र हर साल पान मसाला उद्योग में खपाया जाता है। 20 फीसदी की कमी यहां भी आई है। इसके पीछे कुछ कारोबारी ग्लोबल मंदी को वजह बता रहे हैं, जबकि कुछ का कहना है कि बारिश के मौसम में हर साल पान मसाला उद्योग सुस्त हो जाता है। इसी से इत्र कारोबार में मंदी है।
इत्र उद्योग से मिले राजस्व पर एक नजर

एक जुलाई 2017 को देश भर में जीएसटी लागू हुआ। इससे पहले के वाणिज्यकर विभाग के आंकड़ों में इत्र उद्योग में तेजी से गिरावट साफ नजर आती है। वर्ष 2014-15 से लेकर 2016-17 तक के आंकड़े बताते हैं कि वाणिज्यकर विभाग को इन दो वर्षों के बीच एक करोड़ 85 लाख 58 हजार का राजस्व कम मिला। 2014-15 में इस उद्योग से वाणिज्यकर विभाग को 4 करोड़ 84 लाख 86 हजार का राजस्व मिला था।यह 2015-16 में घटकर तीन करोड़ 14 लाख 58 हजार हो गया। यानी एक करोड़ 70 लाख 18 हजार रुपये का राजस्व एक साल में घट गया। 2016-17 में दो करोड़ 99 लाख 18 हजार का राजस्व मिला। 15 लाख 40 हजार का राजस्व और घट गया। 2014-15 से लेकर 2016-17 तक एक करोड़ 85 लाख 58 हजार रुपये का राजस्व घट गया।

अब वाणिज्यकर विभाग केंद्र और प्रदेश में बंट चुका है। उद्योग भी इन दोनों के बीच बंटा है। बीते वित्तीय वर्ष को स्टेट एक्साइज को करीब सवा करोड़ रुपये का राजस्व मिला। अगर सेंट्रल एक्साइज को भी लगभग इतना ही राजस्व मिला तो दोनों को करीब ढाई करोड़ रुपये का राजस्व मिला है। सेल टैक्स कमिश्नर संजीव निरंजन ने बताया कि जीएसटी लागू होने के बाद विभाग को हर साल करीब सवार करोड़ रुपये का राजस्व मिल रहा है।

इत्र उद्यमी प्रदीप कपूर के मुताबिक घरेलू बाजार में इत्र की मांग घटने और इस उद्योग में मंदी का प्रमुख कारण मौसम भी है। बारिश के मौसम में पान मसाला उद्योग सुस्त हो जाता है। बारिश में नमी की अधिकता हो जाती है। यह तैयार पान मसाले के लिए नुकसानदायक होती है। इसके संपर्क में आने से पान मसाले का रंग और स्वाद दोनों बदल जाते हैं। इससे उत्पादन में कमी की जाती है। इसका सीधा असर व्यापार पर पड़ता है। विदेशों में इत्र की मांग घटने के पीछे ग्लोबल मंदी है। करीब 20 फीसदी विदेशी व्यापार में कमी आई है।

द अतर एंड परफ्यूमर्स एसोसिएशन के सेक्रेटरी पवन त्रिवेदी ने बताया कि इत्र उद्योग में बारिश के कारण भी सुस्ती देखने को मिल रही है। इसके अलावा बिहार में पान मसाले पर पाबंदी से भी असर दिखने लगा है। अगले महीने अक्तूबर से उम्मीद है कि हालात में कुछ सुधार होगा। कई प्रांत ऐसे हैं, जहां भीषण बारिश के बाद आई बाढ़ के कारण संपर्क ही टूट गया था। हालांकि अभी की स्थितियां कुछ समय के लिए हैं। व्यापार जल्द पटरी पर आएगा।

इत्र उद्यमी विवेक नारायण मिश्रा के मुताबिक नोटबंदी और जीएसटी का दुष्प्रभाव अब मंदी के रूप में सामने आया है। राजस्व में कमी इसका सबसे बड़ा सबूत है। इत्र उद्योग को सुधारने की बजाय इसे झटके देने का काम सरकार की ओर से किया गया है। पिछले तीन महीनों की बात करें तो विदेशों से मिलने वाले आर्डर में करीब 25 फीसदी की कमी आई है। घरेलू बाजार में इत्र की मांग घटी है। बड़े उद्योग तो संभल जाएंगे, छोटे उद्योगों की कमर टूट गई है। मंदी का जो दौर चल रहा, यह कब तक रहेगा, यह अनिश्चित है।

इत्र उद्यमी शैलेंद्र अवस्थी ने बताया कि मंदी के दौर से इत्र उद्योग पहले से गुजर रहा था। बिहार में पान मसाले पर पाबंदी से और झटका लगा। हर साल करीब 400 करोड़ का इत्र अकेले पान मसाला उद्योगों को बेचा जाता है। बिहार पान मसाले की खपत के मामले में बड़ा राज्य था। यहां पाबंदी का मतलब व्यापार में करीब 20 फीसदी की गिरावट होना है। मंदी हर तरफ होने से विदेशों में भी मांग कम हुई है। यही हाल रहे तो हालत विकट हो जाएगी। 

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