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कांग्रेस एयर इंडिया की बिक्री का कर रही विरोध ...

खास सरकारी कंपनी होने का हासिल तमगा 

विनिवेश: मोदी सरकार ने बोली की शर्तों को आसान कर घाटे में डूबी एयर इंडिया को बेचने का किया इरादा,उदारीकरण को आगे बढ़ाने और विनिवेश नीति का श्रीगणेश करने वाली कांग्रेस एयर इंडिया की बिक्री की पहल का विरोध कर रही है।...

सरकारी एयरलाइंस एयर इंडिया को बेचने की एक और पहल समय की मांग है। घाटे में डूबी किसी कंपनी को इस आधार पर चलाते रहने का कोई मतलब नहीं कि वह एक सार्वजनिक उपक्रम है। यह सही है कि एयर इंडिया एक बड़ा ब्रांड है और उसे खास सरकारी कंपनी होने का तमगा भी हासिल है, लेकिन अगर ऐसी कोई कंपनी खजाने पर बोझ बन जाए तो फिर उसे चलाते रहना न तो आर्थिक दृष्टि से समझदारी है और न ही प्रशासनिक नजरिये से। सरकार का काम उद्योग-धंधे चलाना नहीं होता। उसका काम तो ऐसे नियम-कानून और साथ ही निगरानी व्यवस्था बनाना होता है जिससे हर तरह के उद्योग-धंधे सही तरह से चल सकें। इनमें एयरलाइंस भी शामिल हैैं।
बेहतर हो कि सरकार अपनी विनिवेश नीति को धार दे और इसके पहले कि अन्य सार्वजनिक उपक्रमों की स्थिति डांवाडोल हो, उनका विनिवेश किया जाए। उसे इससे अवगत होना चाहिए कि यदि कोई सरकारी कंपनी घाटे की चपेट में आ जाती है तो फिर उसका विनिवेश तो मुश्किल से होता ही है, अपेक्षित राजस्व भी नहीं मिल पाता। उसे इससे भी परिचित होना चाहिए कि सेवा क्षेत्र की सरकारी संस्थाएं निजी संस्थाओं का मुकाबला नहीं कर सकतीं।

किसी भी ऐसी सरकारी कंपनी का विनिवेश करना ही बेहतर है जो घाटे से उबर न पा रही हो। एयर इंडिया इसी तरह की एक कंपनी है। उसका सालाना घाटा बढ़ता जा रहा है। यदि उसके विनिवेश में और देरी हुई तो ऐसी भी नौबत आ सकती है कि उसे बंद करना पड़े। मोदी सरकार ने दो वर्ष पहले भी एयर इंडिया को बेचने की कोशिश की थी, लेकिन तब केवल 76 फीसदी हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया था और साथ ही भारी-भरकम बकाया राशि चुकाने की शर्त लगाई थी। माना जाता है कि इसी कारण कोई खरीदार आगे नहीं आया। इस बार सरकार ने सौ प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने का इरादा जाहिर करने के साथ ही बोली की शर्तों को आसान किया है।
देखना है कि ये आसान शर्तें एयर इंडिया के विनिवेश को आसान बनाती हैैं या नहीं? जो भी हो, यह हैरानी की बात है कि उदारीकरण को आगे बढ़ाने और विनिवेश नीति का श्रीगणेश करने वाली कांग्रेस एयर इंडिया की बिक्री की पहल का विरोध कर रही है। यह दिखावे की राजनीति के अलावा और कुछ नहीं। कम से कम कांग्रेस को तो इससे अच्छी तरह परिचित होना ही चाहिए कि आर्थिक मामलों में दिखावे की इसी राजनीति ने सार्वजनिक उपक्रमों की हालत खस्ता की है। सरकारी संपत्ति बेचने पर हाय-तौबा मचाना इसलिए व्यर्थ है, क्योंकि विनिवेश के जरिये हासिल राजस्व अर्थव्यवस्था को गति देने में ही इस्तेमाल होता है।

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