दोस्तों से पैसे लेकर दी UPSC परीक्षा ...
कौन है श्रीधन्या सुरेश?
संघ लोक सेवा आयोग (UPSC- Union Public Service Commission) 2020 ने अभी हाल ही में प्राथमिक परीक्षा के लिए ऑनलाइन फॉर्म का लिंक सक्रिय कर दिया है। जो उम्मीदवार परीक्षा में बैठना चाहते हैं वे ऑफिशियल वेबसाइट पर जाकर पूरी जानकारी ले सकते हैं। हर साल लाखों की तादात में उम्मीदवार इस परीक्षा में शामिल होते हैं। यहां बात हो रही है यूपीएससी 2018 परीक्षा की, जब श्रीधन्या सुरेश ने 410वीं रैंक हासिल करके अपने जिले का नाम रोशन किया था।
आखिर कौन है श्रीधन्या सुरेश? कैसे की उन्होंने यूपीएससी परीक्षा की तैयारी? तैयारी के दौरान कौन सी मुसिबतों का करना पड़ा सामना? इन सभी सवालों के जवाब आपको आगे की स्लाइड में मिल जाएंगे।
श्रीधन्या सुरेश केरल की पहली आदिवासी लड़की हैं, जिन्होंने यूपीएससी 2018 परीक्षा को पास किया है। यह केरल के सबसे पिछड़े जिले वायनाड की रहने वाली हैं। ये यहां की कुरिचिया जनजाति से ताल्लुक रखती हैं।
इनके पिता दिहाड़ी मजदूर होेने का साथ गांव के ही बाजार में धनुष-तीर बेचने का काम करते थे, जबकि मां मनरेगा के तहत काम करती थीं। इनके साथ इनके तीन भाई-बहनों का पालन-पोषण बुनियादी सुविधाओं के अभाव में हुआ था।
इन्होंने बताया कि इनके समुदाय में बेटे-बेटी में ज्यादा भेदभाव नहीं होता है। लेकिन जैसा कि आमतौर पर अन्य आदिवासी परिवारों में होता है, इनके माता-पिता ने इन पर कभी कोई रोक-टोक नहीं लगाई।
परिवार बेहद गरीब था, पर माता-पिता ने अपनी गरीबी को इनकी पढ़ाई के आड़े नहीं आने दिया। प्राथमिक पढ़ाई वायनाड में करने के बाद इन्होंने कालीकट विश्वविद्यालय से अप्लाइड जूलॉजी में परास्नातक किया।
पढ़ाई पूरी करने के बाद ये केरल में ही अनुसूचित जनजाति विकास विभाग में क्लर्क के रूप में काम करने लगीं। कुछ समय वायनाड में आदिवासी हॉस्टल की वार्डन भी रहीं।
एक बार श्रीधन्या सुरेश की मुलाकात एक आईएएस अधिकारी श्रीराम सांबा शिवराव से हुई। वहां पर उन्होंने जिस तरह ‘मास एंट्री’ की, उसने इनके भीतर आईएएस अफसर बनने की ख्वाहिश जगा दी।
चूंकि कॉलेज के समय से इनकी सिविल सेवा में दिलचस्पी थी, तो वहां जब इन्होंने उनसे बात की, तो कई सारी जानकारियां देने के साथ श्रीराम सांबा शिवराव ने परीक्षा में भाग लेने के लिए प्रेरित भी किया।
यूपीएससी के लिए पहले ट्राइबल वेलफेयर द्वारा चलाए जा रहे सिविल सेवा प्रशिक्षण केंद्र में कुछ दिन कोचिंग की। उसके बाद श्रीधन्या सुरेश तिरुवनंतपुरम चली गई और वहां तैयारी की। इसके लिए अनुसूचित जनजाति विभाग ने इन्हें वित्तीय सहायता दी।
इन्होंने मुख्य परीक्षा के लिए मलयालम को मुख्य विषय के तौर पर चुना। मुख्य परीक्षा के बाद जब इनका नाम साक्षात्कार की सूची में आया, तो पता चला कि इसके लिए दिल्ली जाना होगा।
उस समय इनके परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे केरल से दिल्ली तक की यात्रा खर्च वहन कर सकें। यह बात जब मेरे दोस्तों को पता चली, तो उन्होंने आपस में चंदा इकट्ठा करके चालीस हजार रुपयों की व्यवस्था की, जिसके बाद श्रीधन्या सुरेश दिल्ली पहुंच सकी। इन्होंने तीसरे प्रयास में यह सफलता प्राप्त की।
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