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जजों के खिलाफ अपमानजनक आरोप लगाने पर ...

तीन-तीन महीने की कैद की सजा

सुप्रीम कोर्ट ने शीर्ष अदालत के दो पीठासीन न्यायाधीशों के खिलाफ मिथ्यापूर्ण और अपमानजनक आरोप लगाने वाले तीन व्यक्तियों को न्यायालय की अवमानना का दोषी ठहराते हुये उन्हें तीन-तीन महीने की कैद की सजा सुनाई है।

शीर्ष अदालत ने इस मामले की सुनवाई से एक न्यायाधीश के हटने के लिये ओझा द्वारा दायर आवेदन अस्वीकार कर दिया। ओझा ने अपने आवेदन में कहा था कि पीठ इस मामले पर फैसला करने की जल्दी में है।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शीर्ष अदालत के दो पीठासीन न्यायाधीशों के खिलाफ मिथ्यापूर्ण और अपमानजनक आरोप लगाने वाले तीन व्यक्तियों को न्यायालय की अवमानना का दोषी ठहराते हुये उन्हें तीन तीन महीने की कैद की सजा सुनाई है। न्यायालय ने कहा कि यह एक तरह से न्यायपालिका को बंधक बनाने जैसा पुख्ता प्रयास था। 

शीर्ष अदालत ने 27 अप्रैल को अपने फैसले में अधिवक्ता और महाराष्ट्र और गोवा इंडियन बार एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष विजय कुर्ले, इंडियन बार एसोसिएशन के अध्यक्ष नीलेश ओझा और गैर सरकारी संगठन ह्रयून राइट्स सेक्यूरिटी काउन्सिल के राष्ट्रीय सचिव राशिद खान पठान को न्यायाधीशों के खिलाफ अपमानजनक आरोप लगाने की वजह से न्यायालय की अवमानना का दोषी ठहराया। 

न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की पीठ ने चार मई को वीडियो कांफ्रेन्सिंग के माध्यम से इन तीनों दोषियों की सजा की अवधि के सवाल पर सुनवाई की और कहा कि इन अवमाननाकर्ताओं की ओर से लेसमात्र भी पश्चाताप या किसी प्रकार की माफी मांगने का संकेत नहीं है।

पीठ ने चार मई को अपने आदेश में इन्हें सजा सुनाते हुये कहा, ‘‘इस न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ लगाये गये मिथ्यापूर्ण और अपमानजनक आरोपों और किसी भी अवमाननाकर्ता द्वार किसी प्रकार का पाश्चाताप नहीं व्यक्त करने के तथ्य के मद्देनजर, हमारी सुविचारित राय है कि उन्हें नरमी के साथ नहीं छोड़ा जा सकता।’’ 

पीठ ने अपने आदेश में इस बात का भी जिक्र किया कि तीनों अवमाननाकर्ताओं के वकील सजा की अवधि के मुद्दे पर बहस नहीं करना चाहते थे। पीठ ने कहा, ‘‘हम, इसलिए, तीनों अवमाननाकर्ताओं विजय कुर्ले, नीलेश ओझा और राशिद खान पठान को तीन तीन महीने की साधारण कैद और दो-दो हजार रूपए के जुर्माने की सजा सुनाते हैं।’’ 

हालांकि, कोविड-19 महामारी के कारण देश में लागू लॉकडाउन को ध्यान में रखते हुये शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि इनकी सजा 16 सप्ताह बाद से प्रभावी होगी जब इन तीनों को अपनी सजा भुगतने के लिये उच्चतम न्यायालय के सेक्रेटरी जनरल के समक्ष समर्पण करना चाहिए। पीठ ने कहा, ‘‘अन्यथा, इनकी गिरफ्तारी के लिये वारंट जारी किये जायेंगे।’’ 

शीर्ष अदालत ने पिछले साल 27 मार्च को अधिवक्ता मैथ्यूज जे नेदुम्परा को न्यायालय की अवमानना और न्यायाधीशों को धमकाने का प्रयास करने पर तीन महीने की जेल की सजा सुनायी थी लेकिन उनके द्वारा बिना शर्त क्षमा याचना किये जाने पर यह सजा निलंबित कर दी गयी थी। शीर्ष अदालत ने उसी दिन कुर्ले, ओझा और पठान को भी न्यायालय के दो पीठासीन न्यायाधीशों पर अपमानजनक आरोप लगाने के लिये अवमानना नोटिस जारी किये थे। 

शीर्ष अदाालत ने चार मई के अपने आदेश में कहा, ‘‘हमने अपने फैसले में कहा है कि अवमाननाकर्ताओं ने उन न्यायाधीशों को उकसाने के इरादे से शिकायतें की थीं जिन्हें नेदुम्परा की सजा की अवधि के सवाल पर सुनवाई करनी थी ताकि नेदुम्परा के खिलाफ कोई कार्रवाई नही हो इसलिए, स्पष्ट है कि यह न्यायपालिका को एक तरह से बंधक बनाने का पुख्ता प्रयास है।’’ 

शीर्ष अदालत ने इस मामले की सुनवाई से एक न्यायाधीश के हटने के लिये ओझा द्वारा दायर आवेदन अस्वीकार कर दिया। ओझा ने अपने आवेदन में कहा था कि पीठ इस मामले पर फैसला करने की जल्दी में है। पीठ ने कहा, ‘‘हमारे में से एक (न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता) छह मई 2020 को सेवानिवृत्त हो रहे हैं, इसलिए इस मामले की सुनवाई करनी थी और हमें इससे अलग होने की कोई वजह नजर नहीं आती। तद्नुसार यह आवेदन अस्वीकार किया जाता है।’’ 

पीठ ने अपने 27 अप्रैल के फैसले में कहा था कि नागरिक फैसलों की आलोचना कर सकते हैं लेकिन किसी को भी न्यायाधीशों की मंशा या उनकी सदाशयता पर सवाल उठाने का अधिकार नहीं है। न्यायालय ने कहा था कि न्यायाधीशों को डराने धमकाने के प्रयासों से सख्ती से निबटना होगा।

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