कानून के तहत इन अनुच्छेदों में मिलता है विशेष अधिकार ...
अनुच्छेद 22: गिरफ्तारी या हिरासत में लिए जाने पर उसके विरुद्ध संरक्षण का अधिकार
'अनुच्छेद 22 में आपको यह अधिकार प्राप्त होता है कि आप यह जान सकते हैं कि हिरासत के विरुद्ध आपका संरक्षण का अधिकार क्या है '-सुभाष चंद्र दुबे, आईपीएस अधिकारी
अनुच्छेद 22 (1) यह अनुच्छेद गिरफ्तार हुए और हिरासत में लिए गए व्यक्ति को विशेष अधिकार प्रदान करता है। विशेष रूप से गिरफ्तारी का आधार सूचित किया जाना कि किस वजह से हिरासत में लिया जा रहा है। अपनी पसंद और सहूलियत के एक वकील से सलाह करने का अधिकार आपको देता है। आप यह जान सकते हैं कि किस आधार पर कौन सी धारा लगा कर आपको हिरासत में लिया गया है।
'जब भी गिरफ्तारी की नौबत आती है और आपको किसी वजह से पुलिस स्टेशन जाना पड़ता है तो आप अधिकारी से अपने अधिकारों को लेकर बोल सकते हैं और उनका उपयोग कर सकते हैं- जीतेन्द्र राणा, आईपीएस अधिकारी
अनुच्छेद 22 (2) गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर एक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए जाने का अधिकार है। मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना तय अवधि से अधिक समय तक हिरासत में नहीं रखे जाने का अधिकार प्रदान करता है। आप अपनी बात मजिस्ट्रेट के आगे रख सकते हैं।
'आपको कानून अधिकार देता है कि आप अपनी गिरफ्तारी के विषय में जान सकते हैं। आपको अपने अधिकारों के प्रति आवश्यक तौर पर जागरूक होना चाहिए। कानून आपका दोस्त होता है और पुलिस भी आपकी मदद के लिए होती है- 'दीपक वर्णवाल, आईपीएस अधिकारी
गिरफ्तारी: पहला अधिकार- सीआरपीसी की धारा 50 (1) के तहत पुलिस अगर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करती है तो गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को उसका कारण बताना होगा। यह जानना उसका अधिकार है।
गिरफ्तारी: दूसरा अधिकार- जब पुलिस गिरफ्तारी के लिए आए तो उसे यूनिफॉर्म में होना चाहिए। वर्दी पर नेमप्लेट लगी होनी चाहिए, उस पर नाम स्पष्ट लिखा होना चाहिए। अगर महिला की गिरफ्तारी है तो महिला पुलिस साथ होनी चाहिए।
गिरफ्तारी: तीसरा अधिकार-सीआरपीसी की धारा 41 (बी) के अनुसार पुलिस को अरेस्ट मेमो यानी गिरफ्तारी का विवरण तैयार करना होगा,जिसमें गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी की रैंक, गिरफ्तार करने का समय क्या है, पुलिस अधिकारी के अतिरिक्त जो प्रत्यक्षदर्शी (eyewitness) के हस्ताक्षर भी शामिल होंगे।
गिरफ्तारी:चौथा अधिकार-जो अरेस्ट मेमो होता है उसमें गिरफ्तार किए गए व्यक्ति से भी हस्ताक्षर करवाना जरूरी होता है। उस हस्ताक्षर के बिना वह अधूरा माना जायेगा।
गिरफ्तारी: पांचवा अधिकार-जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है उसकी हर 48 घंटे के अंदर मेडिकल जांच जरूर होनी चाहिए। उसकी मेडिकल जांच की रिपोर्ट पूरी होनी चाहिए। सीआरपीसी की धारा 54 के मुताबिक अगर गिरफ्तार किया गया व्यक्ति अपनी मेडिकल जांच कराने की मांग करता है, तो पुलिस को उसकी मेडिकल जांच करानी होगी।
गिरफ्तारी: छठवां अधिकार-सीआरपीसी की धारा 50(A) के मुताबिक गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के अधिकार, अपनी गिरफ्तारी की जानकारी वह अपने परिवार या रिश्तेदार को दे सकता है। अगर उसको अपना अधिकार पता नहीं है तो यह पुलिस अधिकारी का कर्तव्य है कि वह इसकी जानकारी उसके परिवार और उसको दें।
गिरफ्तारी: सातवां अधिकार-सीआरपीसी की धारा 41D के अनुसार हिरासत में लिए गए व्यक्ति को यह अधिकार प्राप्त है कि वह पुलिस जांच के दौरान कभी भी अपने वकील से मिल सकता है और बात कर सकता है। अपने परिजनों से भी मुलाकात कर सकता है और बातचीत कर सकता है।
गिरफ्तारी: आठवां अधिकार-असंज्ञेय अपराधों के मामले में जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है उसको वारंट देखने का अधिकार होता है। मगर असंज्ञेय अपराधों के मामले में पुलिस बिना वारंट दिखाए भी गिरफ्तार कर सकती है।
गिरफ्तारी: नौवां अधिकार-महिलाओं की गिरफ्तारी के संबंध में, सीआरपीसी की धारा 46(4) अनुसार किसी भी महिला को सूरज ढलने के बाद और सूरज निकलने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। सीआरपीसी की धारा 46 के अनुसार महिला को सिर्फ महिला पुलिसकर्मी ही गिरफ्तार कर सकती है। किसी भी महिला को पुरुष पुलिसकर्मी गिरफ्तार नहीं कर सकता है।
गिरफ्तारी: दसवां अधिकार-सीआरपीसी की धारा 55 (1) के अनुसार जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जायेगा उसकी सुरक्षा और स्वास्थ्य का ध्यान पुलिस की जिम्मेदारी होगी। 'सीआरपीसी की धारा 57 के तहत पुलिस किसी व्यक्ति को 24 घंटे से ज्यादा हिरासत में नहीं रख सकती है, अगर पुलिस किसी को 24 घंटे से ज्यादा हिरासत में रखना चाहती है तो उसको मजिस्ट्रेट से ही इजाजत लेनी होगी और मजिस्ट्रेट इस संबंध में इजाजत किस आधार पर दे रहा है उसका विवरण कारण सहित भी बताएगा'- सुरेंद्र चौधरी, आईपीएस अधिकारी
अपराध क्या होता है
समाज के विरोध में किया गया कोई भी कार्य अपराध है। जो अपराध करता है उसे अपराधी कहा जाता है। किसी भी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन को अपराध कहते हैं। अपराधियों को ही समाज विरोधी तत्व भी कहा जाता है। अपराधी, अपराध और उसके स्वभाव, उसके सुधार का अध्ययन जिसके तहत किया जाता है उसको अपराध शास्त्र कहा जाता है।
अपराध दो प्रकार के होते हैं
संज्ञेय अपराध (Cognisable offence) और असंज्ञेय अपराध (Non Cognisable offence),संज्ञेय अपराध (Cognisable offence)- क्रिमिनल प्रोसिजर कोड (CrPC 1973) में संज्ञेय और असंज्ञेय अपराध की परिभाषा दी गई है। क्रिमिनल प्रोसिजर कोड की धारा 2 (सी) और 2 (एल) में विस्तृत रूप से दी गई है।
इस अधिनियम की धारा 2 (सी) के अनुसार, संज्ञेय अपराध वह है जिसमें पुलिस किसी व्यक्ति को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार कर सकती है। पुलिस के पास संज्ञेय अपराधों में बिना वारंट गिरफ्तार करने के अधिकार होता है।
संज्ञेय अपराध के अंतर्गत आते हैं- क्रिमिनल प्रोसिजर कोड (CRPC 1973) के शेड्यूल 1 के अनुसार, संज्ञेय अपराध के अंतर्गत, मुख्यतः अपराध इस प्रकार हैं - दंगा, अपहरण,चोरी, डकैती, लूट,बलात्कार,हत्या
असंज्ञेय अपराध क्या है- क्रिमिनल प्रोसिजर कोड (CRPC 1973) की धारा 2 (एल) के अनुसार ऐसे अपराध जिनमें पुलिस को बिना वारंट के गिरफ्तार करने का अधिकार प्राप्त नहीं है, वे सभी अपराध असंज्ञेय अपराध कहलाते हैं। भारतीय दंड संहिता की धारा 298 के अनुसार पुलिस बिना वारंट के असंज्ञेय अपराध में गिरफ्तार नहीं कर सकती है।
असंज्ञेय अपराध की श्रेणी में ये सब आता हैं- जालसाजी, धोखाधड़ी, झूठे सबूत देना, मानहानि
'संज्ञेय अपराध पर पुलिस सीधे कार्रवाई कर सकती है और असंज्ञेय अपराध पर कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस कार्रवाई करती है। गैर जमानती मामलों में पुलिस अपराधी को 24 घंटे तक हिरासत में रख सकती है। '
हरि नारायण मिश्र, आईपीएस अधिकारी
भारत में अपराध और आपराधिक परीक्षण से निपटने वाले कानून निम्नलिखित हैं- भारतीय दंड संहिता, 1860, आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973,भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872
हर अपराध के पीछे कुछ मुख्य कारण होते हैं जिसमें से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं- आर्थिक कारण, मनोवैज्ञानिक कारण, शारीरिक विकार, मनोविज्ञानिक कारण, रंजिश।
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