Total Visitors : 6 0 4 1 2 2 4

संगीत सुनने के लिए कौन सा तरीक़ा पर्यावरण के लिए मुफीद ...

आंकड़े हैं गवाह.....

आज कल लोग सीधे इंटरनेट से संगीत सुनना पसंद करते हैं। यू-ट्यूब और ऐसे ही दूसरे माध्यमों से संगीत की स्ट्रीमिंग होती है। लेकिन, पहले ऐसा नहीं था। कैसेट, सीडी और रिकॉर्ड से संगीत का लुत्फ उठाया जाता था। पिछले कुछ सालों से इन पुराने माध्यमों ने फिर से बाजार में वापसी की है। विनाइल रिकॉर्ड की बिक्री में तो 2007 के बाद से 1427 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। पिछले साल अकेले ब्रिटेन में ही 40 लाख एलपी रिकॉर्ड बिके।
विनाइल रिकॉर्ड में आ रही बिक्री का मतलब ये है कि ये डिस्क बनाने का काम तेज होगा। दिक्कत ये है कि इन्हें रिसाइकिल नहीं किया जा सकता। मतलब ये कि इनकी बिक्री बढ़ने से पर्यावरण को नुकसान ज्यादा होगा। वैसे, एल्बम का कवर तो रिसाइकिल किए जा सकने वाले प्लास्टिक से बनता है। पहले रिकॉर्ड भी शेलाक नाम के तत्व से बनते थे। इसे एक कीड़े से हासिल किया जाता था। लेकिन, ये जल्दी खराब हो जाते थे। इसीलिए पीवीसी के इस्तेमाल से रिकॉर्ड बनाए जाने लगे। 
पीवीसी को नष्ट करने में सदियां गुजर सकती हैं। यानी इनका कचरा नष्ट होने तक इंसानों की कई पीढ़ियां बीत जाएंगी। ये मिट्टी में मिलने पर जमीन को भी नुक़सान पहुंचाते हैं। आज जो रिकॉर्ड बनते हैं कि उनसे आधा किलो कार्बन डाई ऑक्साइड पर्यावरण मे मिलती है। ऐसे में केवल ब्रिटेन में 40 लाख एलपी रिकॉर्ड बिकने का मतलब है क़रीब 2 हज़ार टन कार्बन डाई ऑक्साइड पर्यावरण में घुली। इसके अलावा इन रिकॉर्ड को लाने-ले जाने के दौरान जो प्रदूषण हुआ सो अलग।
80 के दशक में एलपी रिकॉर्ड की जगह सीडी बाजार में आई। ये ज़्यादा दिनों तक चलती थी और इसकी आवाज़ भी बेहतर थी। सीडी को पॉलीकार्बोनेट और एल्यूमिनियम से बनाया जाता है। इससे पर्यावरण को कम नुक़सान होता है। लेकिन, इन्हें रिसाइकिल नहीं किया जा सकता। इसके लिए प्लास्टिक और एल्यूमिनियम को अलग करना होगा, जो बहुत ही पेचीदा प्रक्रिया है।
अच्छी क्वालिटी की सीडी 50 से 100 साल तक चल सकती है। लेकिन सस्ती सीडी के बारे में ये दावा नहीं किया जा सकता। ये जल्दी ख़राब हो जाती हैं। डिजिटल दुनिया में संगीत सुनना बहुत आसान हो गया है। आप किसी भी वेबसाइट पर जाकर सीधे पसंदीदा गीत सुन सकते हैं। इसे कॉपी करना भी आसान हो गया है। अब संगीत के ये माध्यम ऐसे हैं, जिनमें कोई तत्व इस्तेमाल नहीं होता। पर, इसका ये मतलब नहीं कि इस तरीके से संगीत सुनने का पर्यावरण पर असर नहीं पड़ता। जो इलेक्ट्रॉनिक फाइल आप डाउनलोड करते हैं, या सीधे स्ट्रीम करते हैं, उन्हें किसी न किसी सर्वर में सुरक्षित रखा जाता है।
इन सर्वर को ठंडा करने में बहुत बिजली खर्च होती है। बार-बार इन्हें चलाने में भी बिजली खर्च होती है। वाई-फाई का इस्तेमाल होता है और मोबाइल या प्लेयर जैसी इलेक्ट्रॉनिक चीजों का प्रयोग होता है। हम जितनी बार अपनी पसंद का गाना स्ट्रीम करते हैं, उतनी बार ये प्रक्रिया दोहराई जाती है। इसका मतलब है कि इसमें बिजली खर्च होती है।

पर्यावरण को कितना नुकसान?

इसके मुक़ाबले कोई रिकॉर्ड, सीडी या कैसेट एक बार खरीदे जाने के बाद बार-बार बजाया जा सकता है। इसे चलाने में ही बिजली लगती है। अगर किसी हाई-फ़ाई साउंड सिस्टम पर हम प्लेयर चलाते हैं तो इस में 107 किलोवाट बिजली साल भर में ख़र्च होती है। वहीं, सीडी चलाने में 34।7 किलोवाट बिजली लगती है। अब आपके सामने दोनों ही विकल्प हैं। तो, संगीत सुनने के लिए कौन सा तरीक़ा पर्यावरण के लिए मुफीद होगा?

अगर आप कोई गाना बार-बार सुनते हैं, तो इसे रिकॉर्ड प्लेयर से सुनना सस्ता भी होगा, और, पर्यावरण के लिए भी कम नुकसानदेह होगा। लेकिन, अगर आप किसी गाने को एक या दो बार ही सुनते हैं, तो फिर इंटरनेट से ही सुनना बेहतर रहेगा। संगीत के अपने शौक से आप पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, तो विनाइल रिकॉर्ड ही बेहतर होगा। लेकिन, ऑनलाइन संगीत सुनना पसंद है, तो किसी गाने को डाउनलोड कर के आप अपने मोबाइल या लैपटॉप में सेव कर लें। ऐसा करना पर्यावरण के लिहाज से बेहतर होगा।

Related News

Leave a Reply