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चंद रुपयों के लालच में जिंदा जल गए 20 लोग ...

मौत के आंकड़ों पर पर्दा भी डालने का प्रयास

कन्नौज के घिलोई गांव में हुए हादसे के पीछे अफसरों की जेब भरने की प्रवृत्ति भी काफी हद तक जिम्मेदार रही। चंद रुपयों की खातिर जिम्मेदार अफसरों ने कई जिंदगियों को मौत की नींद सुला दिया। आश्चर्य की बात यह रही कि इस पूरे मामले में मौत के आंकड़ों पर पर्दा भी डालने का प्रयास किया गया। वर्ष 2018 में जिस ट्रैवलिंग एजेंसी की बस में सफर कर रहे 18 लोगों की मौत हो चुकी थी उसी एजेंसी की बस जिले में बेधड़क यात्रियों को ढो रही थीं।
एक दागदार ट्रैवलिंग एजेंसी की बस का जिले में संचालन हो रहा था, लेकिन अफसर जेब गर्म कर शांत बैठे रहे। छिबरामऊ के घिलोई में शुक्रवार देर रात बस व ट्रक में भिड़ंत के बाद आग लग गई थी। यह हादसा कई जिंदगियों को निगल गया। हादसे का शिकार हुई स्पीलर बस टूरिज्म व पार्टी के परमिट की आड़ में रोजाना गुरसहायगंज और छिबरामऊ से सवारियां ढो रही थी।
मजे की बात यह है कि मैनपुरी में 2018 में हुए हादसे में 18 लोगों की जान जाने के बाद विमल ट्रैवलिंग एजेंसी की बसों का जिले में संचालन कई महीने तक रुका रहा, लेकिन मामला शांत होते ही इसका संचालन फिर शुरू हो गया। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष लल्लू सिंह ने भी यह मामला उठाया और जांच कराने की मांग की। एआरटीओ व पुलिस की रहमोकरम से इस ट्रैवलिंग एजेंसी की बसें जिले में बिना किसी रोक-टोक के फर्राटा भर रही थीं।
अफसर जेब गर्म न करके समय पर चेत जाते और जिले में इस ट्रैवलिंग एजेंसी और इस तरह से यात्रियों को ढोने वाली दूसरी ट्रैवलिंग एजेंसी पर यदि रोक लग जाती, तो शायद यह हादसा न होता। वर्तमान में जीटी रोड व एक्सप्रेस वे पर स्लीपर बसें दौड़ रही हैं। इन बसों के पास टूरिज्म व शादी पार्टी के परमिट हैं। परिवहन नियमों के मुताबिक राष्ट्रीयकृत मार्गों पर क्षमता से अधिक सवारियां ले जाने पर रोक है।
इसके बाद भी स्लीपर कोच बसेे रोडवेज के कम किराये पर यात्रियों को मौत का सफर करा रही हैं। अतिरिक्त सीटों के खेल में घाटे की भरपाई करते हैं। दिल्ली, अजमेर, जयपुर हो या आगरा का 300-350 रुपये किराया है। यह खेल अर्से से चल रहा है। हरदोई व उन्नाव से एक दर्जन बसें रात को कन्नौज, मैनपुरी, आगरा, जयपुर जाती हैं। यह हरदोई के सुरोमन नगर, शाहाबाद, गौसगंज, गुड़वा, हरपालपुर, मल्लावां व उन्नाव के बिलग्राम से चोरी-छिपे कन्नौज से निकलती है।
जगह-जगह यह बसें सवारियों को बैठाती और उतारती भी हैं। पुलिस समेत सभी जिलों के एआरटीओ को इसकी जानकारी रहती है। जानकारों की माने चंद रुपये के लालच में यह खेल अर्से से चल रहा है। जेब गर्म होने से अधिकारी जानकार भी अनजान बने रहते हैं। समय-समय पर होने वाले बड़ों हादसों के बाद भी अधिकारी पुराने हादसों से सबक नहीं लेते हैं। अफसरों की लापरवाही का खामियाजा कई परिवारों को उठाना पड़ा।

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