प्रदेश मे बिगड़ती कानून व्यवस्था, कलमकारों पर हो रहा उत्पीड़न ...
राजनीतिक हस्तक्षेप प्रेस की आज़ादी पत्रकारों के उत्पीड़न के विरुद्ध देश की सबसे बड़ी पत्रकारों की संस्था आईरा द्वारा कानपुर नगर जिलाधिकारी को सौपा गया ज्ञापन
जिस तरह स्ट्रीट लाइट,पुलिस का नियमित गश्त अंधेरे में सड़कों पर कुछ भी गलत या अन्यायपूर्ण गतिविधियों पर प्रकाश डालते है,संपादकीय कलम अन्याय और सामाजिक एवं सरकारी तंत्र की गलतियों को उजागर करती है।
बीते कुछ वर्षों में देश में प्रेस की आज़ादी स्वतंत्रता पूर्व सी हो चली है,आज़ादी से पूर्व जिस प्रकार ब्रिटिश सरकार द्वारा पत्रकारों एवं प्रेस की आज़ादी का हनन किया जाता था और पत्रकारों को बिना किसी ठोस वजह के अत्याचारों का सामना करना पड़ता एवं उनको जेल में ठूस दिया जाता था वही आज फिर हो चला है,आज़ादी से पूर्व जिस प्रकार स्वतंत्रता सेनानी पत्रकार बाल गंगाधर तिलक ,मदन मोहन मालवीय,जी सुब्रमणि अय्यर, सिसिर कुमार घोष,मोतीलाल घोष,के रामकृष्ण पिल्लई जैसे पत्रकारों का दमन एवम शोषण का असफ़ल प्रयास अंग्रेज़ो द्वारा किया जाता था,लगभग वही काला अध्याय इन दिनों जहाँ नज़र डालो चाहे विश्व पटल की बात करे यह अपने देश हिंदुस्तान की प्रेस की आज़ादी उसकी सच उजागर करने की इच्छा शक्ति का दमन किसी न किसी माध्यम से सत्ता में विराजमान सरकार उसके नौकरशाहों कॉर्पोरेट घरानों एवम समाज के विभिन्न प्रभावशाली व्यक्तियो द्वारा किसी न किसी रूप में साम दाम दंड भेद की नीति अनुसार किया जा रहा है,जिनके चलते आज जनता का विश्वास इस चौथे स्थम्भ से लगभग उठ गया है,कभी सम्मान की नज़र से देखे जाने वाले पत्रकार को आज विभिन्न अशोभनीय उपाधियों से सुशोभित किया जाता है,फिर भी पत्रकार इन सब से परे समाज देश दबे कुचले शोषित एवं अपने आत्मसम्मान के लिये विकट परिस्थितियों में बिना अपने प्राणों और परिवार के बारे में सोचते हुए दिन रात जनसेवा करता है परंतु उनके बदले उनको क्या प्राप्त होता है झूठे मुकदमे में जेल, जानलेवा हमले,अभ्रद भाषा में उसको और उनके परिवार को अशोभनिय टिप्पणियों का वार और अगर पत्रकार महिला है तो इनकी त्रीवता और भी अधिक एवं कष्टकारी होती है
भारत पिछले साल के मुक़ाबले दो पायदान नीचे गिरा है, भारत 138वें नंबर से खिसककर 140वें स्थान पर आ गया है, 2018 में भारत 136वें स्थान पर था यानी यह लगातार हो रही गिरावट है.
रिपोर्ट बताती है कि 2018 में भारत में कम-से-कम छह पत्रकार अपना काम करने की वजह से मारे गए.
पत्रकारों की आवाज़ दबाए जाने के बारे में रिपोर्ट कहती है, "सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों के खिलाफ़ आपराधिक मामले दर्ज किए जाते हैं, कुछ मामलों में तो राजद्रोह का केस दर्ज किया जाता है जिसमें आजीवन कारावास की सज़ा हो सकती है."
इस वर्ष कुल 80 पत्रकार मारे गए, 348 इस समय जेल में हैं, और 60 को बंधक बनाकर रखा जा रहा है, रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) द्वारा आज जारी पत्रकारों की जानलेवा हिंसा और अपमानजनक उपचार के वार्षिक विश्वव्यापी दौर के अनुसार, जो मीडिया कर्मियों के प्रति शत्रुता का एक अभूतपूर्व स्तर दिखाता है।
आर एस एफ राउंड-अप के आंकड़े सभी श्रेणियों में बढ़े हैं। हत्या, कारावास, बंधक बनाना और लागू गायब सभी बढ़ गए हैं। पत्रकारों को इससे पहले कभी भी 2018 की तरह हिंसा और अपमानजनक व्यवहार का सामना नहीं करना पड़ा है।
इस वर्ष को सभी श्रेणियों में पत्रकारों की संख्या द्वारा चिह्नित किया गया है ,जो अपने काम के सिलसिले में मारे गए, एक आंकड़ा जो आठ प्रतिशत बढ़कर 80 हो गया और मारे गए पेशेवर पत्रकारों की संख्या में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई, 55 से इस साल 2017 से 63। यह संख्या पिछले तीन वर्षों में घट रही थी।
व्यापक रूप से सऊदी स्तंभकार जमाल खशोगी की हत्या और युवा स्लोवाक डेटा पत्रकार जान कुइसाक ने उन लंबाई पर प्रकाश डाला, जिनमें स्वतंत्रता के दुश्मनों को जाने के लिए तैयार किया जाता है। 2018 में मारे गए आधे से अधिक पत्रकारों को जानबूझकर निशाना बनाया गया था।
" पत्रकारों के खिलाफ हिंसा में इस वर्ष अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गया है, और अब स्थिति के महत्वपूर्ण है एल ," आरएसएफ महासचिव क्रिस्टोफ़ Deloire कहा। “ बेईमान राजनेताओं, धार्मिक नेताओं और व्यापारियों द्वारा, कभी-कभी बहुत ही खुले तौर पर घोषित किए गए पत्रकारों की घृणा का ज़मीन पर दुखद परिणाम होता है, और इस गड़बड़ी में पत्रकारों के खिलाफ उल्लंघन में वृद्धि हुई है।
"सामाजिक नेटवर्क द्वारा प्रवर्तित, जो इस संबंध में भारी जिम्मेदारी का सामना करता है, घृणा के ये भाव हिंसा को वैध करते हैं, जिससे पत्रकारिता, और लोकतंत्र खुद को थोड़ा और कम कर देता है।"
ग्यारह पत्रकारों की हत्या,46 पर हमला, 27 पुलिस की कार्रवाई: प्रेस फ्रीडम 2017 की रिपोर्ट,गौरी लंकेश की हत्या से लेकर मानहानि के मुकदमों तक, मीडिया पर हमले आम हो गए हैं।
इंडिया फ्रीडम रिपोर्ट: मीडिया फ्रीडम एंड एक्सप्रेशन ऑफ एक्सप्रेशन इन 2017 ’ने आंकड़ों के साथ पुष्टि की कि 2017 एक चौंकाने वाला वर्ष था, जिसमें पत्रकारों, फोटोग्राफरों और स्ट्रिंगरों सहित देश के विभिन्न हिस्सों से रिपोर्टिंग की गई थी। पिछले साल 11 पत्रकारों की हत्या हुई, जिनमें से तीन का कारण उनके काम से जुड़ा हो सकता है, हमलों के 46 मामले और गिरफ्तारी के मामलों सहित पुलिस की कार्रवाई के 27 मामले।
सितंबर में, साप्ताहिक लंकेश पत्रिके की संपादक गौरी लंकेश - एक पत्रिका जिसे "स्थापना-विरोधी" प्रकाशन के रूप में वर्णित किया गया है - बेंगलुरु में उनके निवास पर गोली मारकर हत्या कर दी गई । समाचार चैनल दीन राट से त्रिपुरा में दो पत्रकारों की हत्या कर दी गई थी, जबकि वह दो प्रतिद्वंद्वी आदिवासी संघों के बीच झड़पों को कवर कर रहे थे , और सिकंदर पत्रिका के वरिष्ठ पत्रकार सुदीप दत्ता भौमिक , जिनकी त्रिपुरा स्टेट राइफल्स के एक जवान ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। त्रिपुरा में बोधजंग नगर में परिवर्तन दास।
पत्रकारों को पुलिस और राजनेताओं से सबसे अधिक हमलों का सामना करना पड़ा, अगस्त 2017 में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत सिंह की गिरफ्तारी के बाद हुई हिंसा के दौरान घायल हुए पत्रकारों में टेलीविजन पत्रकार शामिल हैं।
पत्रकारों पर हमलों की संख्या
अपराधी हमलों की संख्या
पुलिस 13
राजनेता, राजनीतिक दल के कार्यकर्ता 10
अज्ञात हमलावरों ने 6
दक्षिणपंथी संगठन 12
कट्टरपंथी संग़ठन 20
कई राज्य सरकारों ने विभिन्न आयोजनों के लिए मीडिया का उपयोग प्रतिबंधित किया है, इस सूची में गोवा, जम्मू और कश्मीर, केरल, ओडिशा, राजस्थान और पश्चिम बंगाल की सरकारें शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मीडियाकर्मियों पर सबसे ज्यादा हमले हुए।यूपी में 2014 में मीडियाकर्मियों पर हमलों के 63 मामले दर्ज किए।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने संसद को सूचित किया कि पिछले चार वर्षों में पत्रकारों पर हमलों के लिए 140 आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ दो सौ से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं।
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ
मंत्रालय ने हालांकि कहा कि इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि मीडिया के लोगों पर हमलों के लिए कोई संगठन जिम्मेदार है या नहीं।
अधिकतम हमलों के लिए बेंचमार्क वर्ष 2014 एवम 2017 है जब पत्रकारिता जगत को सर्वाधिक क्षति पहुँचाई गई, उत्तर प्रदेश के साथ आम चुनावों का साल मीडियाकर्मियों पर हमलों के लिए 63 मामलों को दर्ज करता है। हालाँकि, 2015 में 3 और 2016 में रिपोर्ट किए गए एक मामले के साथ यूपी में मीडियाकर्मियों पर हमले कम हुए। राज्य ने 2017 के लिए नंबर दर्ज नहीं किया। इस बीच, लखनऊ में आबिद अली नामक पत्रकार पर पुरुषों के एक समूह ने हमला किया। उसके घर के बाहर ही कुल्हाड़ी, हथौड़े और डंडे से बेरहमी से हमला किया गया, लेकिन उसकी पत्नी ने बचा लिया, जिसने हमलावरों को डराने के लिए गोली चलाई।
उत्तर प्रदेश के बाद बिहार है जहां 2014 में 22 मामले दर्ज किए गए थे। मध्य प्रदेश में, हालांकि, तीन साल तक मीडियाकर्मियों पर नियमित हमले दर्ज किए गए। 2014 में सात मामले, 2015 में 19 और केंद्रीय राज्य द्वारा 2016 में 24 मामले दर्ज किए गए।
2017 में राजस्थान और त्रिपुरा में मीडियाकर्मियों पर हमलों के तीन मामले दर्ज किए गए।
सम्पूर्ण देश विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमराई हुई है,सरकारी तंत्र जितनी भी अपनी पीठ स्वयं ठोक ले पर धरातल की स्थिति और आकड़े उनको अपने मुंह मियां मिट्ठू वाली कहावत तक ही सिमित कर देते है,मुख्यमंत्री उत्तरप्रदेश योगी आदित्यनाथ द्वारा अपने कार्यकाल के आरंभ से ही यह संदेश अपराधियो को दिया गया कि या तो अपराध छोड़ दो या प्रदेश पर वर्तमान परिस्थितियों में तो ऐसा कुछ नज़र नही आता, इनकाउंटर और अनगिनत हाफ इनकाउंटर के उपरांत भी प्रदेश में अपराध दर घटने के विपरीत और अधिक हो गई है,जिसके कारण बीते दो वर्षों में प्रदेश में बलात्कार हत्याएं जहरीली शराब से जान गवाने वाले निर्दोष नागरिकों की संख्या का स्वयं सरकारी आकड़ा गवाह है,ज़मीनी कब्ज़े,चैन सनेचिंग,अवैध निर्माण, अवैध मिट्टी बालू मोरंग खनन जैसे कितने ही अनगिनत अपराधों कों प्रदेश सरकार रोकने में लगभग लाचार नाकाम सी प्रतीत हुई, अपनी विफलताओं को छुपाने में असमर्थ प्रदेश की योगी सरकार की बौखलाहट संविधान के चौथे स्थम्भ पर निकलती साफ देखने कों मिल रही है, वर्तमान में पत्रकारों के साथ हुई विभिन्न सामाजिक एवं प्रशासनिक कार्यवाहियों के माध्यम से हम सब के सामने है, इसी बौखलाहट की वजह से योगी सरकार के पुलिस प्रशासन ने अपराध का ग्राफ घटाने के प्रयासों के विपरीत अपनी अकुशलता की खीज सच उजागर करने वाले निर्दोष कलमकार पर उतार दी,
मामला नोएडा के पत्रकार अनुज शुक्ला की असंवैधानिक जबरन गिरफ्तारी का है बताते चलें कि बीते दिनों नोएडा में नेशन लाइव टीवी चैनल के सम्पादक अनुज शुक्ला व चैनल हैड इशिका सिंह के खिलाफ सरकार द्वारा मुकदमा दर्ज करवाया गया था। इस मामले में पुलिस ने अनावश्यक त्रीवता दिखाते हुये दो पत्रकारों को गिरफ्तार भी कर लिया था। इस घटना की निंदा करते हुए ऑल इंडियन रिपोर्ट्स एसोसियेशन (आईरा) के *राष्ट्रीय संगठन मंत्री योगेन्द्र अग्निहोत्री, प्रदेश प्रवक्ता फैसल हयात,मंडल उपाध्यक्ष एस पी वी विनायक जिलाध्यक्ष आशीष त्रिपाठी, जिला महामंत्री दिग्विजय सिंह,वरिष्ठ मंत्री मयंक सैनी,वरिष्ठ उपाध्यक्ष शिव मंगल शुक्ला, उपाध्यक्ष विकास श्रीवास्तव, कोषाध्यक्ष अमित कश्यप,प्रचार मंत्री पप्पू यादव,आईरा महिला मोर्चा,कार्यकारिणी सदस्यों,आईरा सदस्यों पत्रकारों ने आज जिलाधिकारी कार्यालय में योगी सरकार की तानशाही के विरूद्ध व पीड़ित पत्रकार कों न्याय दिलाने के लियें ज्ञापन दे कर अपना शांतिपूर्ण विरोध दर्ज कराया।
ऑल इंडियन रिपोर्ट्स एसोसियशन (आईरा)के अन्य कई सदस्यों व पदाधिकारियों ने शांतिपूर्ण तरीके से राज्यपाल व देश की वर्तमान सरकार से पत्रकार हितों की रक्षा की मांग की व देश व प्रदेश में बिगड़ती कानून व्यवस्था पर गहरा दुख प्रकट कर केंद्र सरकार को प्रदेश सरकार को उचित दिशानिर्देश दे प्रदेश में कानून व्यवस्था स्थापित कर आम जनमानस को भयपूर्ण वातावरण से मुक्ति की अपील की ।
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नूरुल अनवार
संपादक पोल खोल न्यूज़
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