बलात्कारी,समाज के ठेकेदार,प्रशासन,हम और आप ज़िम्मेदार कौन❓❓❓ ...
अजब ग़ज़ब मेरा देश न्यारा, विविधताओं का भंडार है सारा,
देश को यहाँ हम पुकारे माँ,
नारी में देखे देवी की प्रतिछाया,
कैसा यह आडंबर हम ने फैलाया,
कोई माँ न किसी की कोई बहन बेटी,
जब देहज की वेदी पर देना है आहुति,वासना के पुजारियों ने भी पलपल बोटी नोची,
भूल जाते हो अपना अस्तित्व,
क्या है तुम्हारी पहचान,
धरती पर कैसे विराजे,
किसका हो तुम वरदान,
नासमझ कैसे तुम इंसान,
रहने दो अब बस भी करो,
क्यो माँ संग देवी रूप को लज्जित करते हों,
जिस नारी कोख़ में नौ माह पलते हो,
क्यो फिर उस संग निर्लज्जता करते हो,
समय रहते संभल जाओ वरना पछताओगे,
बिन नारी धरती को सागर संग भी सूखा पाओगें,
सोच कर भी मन विचलित हो जाता है,
कैसे कोई किसी अबला के दामन पर दाग लगता है,
अजब ग़ज़ब मेरा देश न्यारा!
जिस देश में धरती को माँ,नारी में देवी का रूप देखा जाता,वही नारी जाति के तिलस्कार की घटनाओं में दिन प्रतिदिन बढ़ोत्तरी होती जा रही है,वर्तमान आकड़े सरकारी एवं गैरसरकारी संस्थानों संग अपने आसपास हो रही घटनाओं को देखते हुए गंभीर चिंता का विशेष है,हो हल्ला बहस बड़ी बड़ी बातें तो चारो तरफ हर वर्ग,क्षेत्र में की जाती है,आधी आबादी संग किसी भी अप्रशियाचित घटना के होने के पश्चात चारो ओर से आवाज़ सुनी जा सकती है,अब यह होगा,यह किया जाएगा,यह होना ही चाहिए,पर होता क्या है,एक और निंदनीय घटना का समाचार,पुरानी भूलो नई के लिए मोमबत्तीयो का इंतज़ाम कर भीड़ का हिस्सा मात्र बन जाओ,सहानभूति और संवेदना दर्शाने का सब से आसान माध्यम,ज़िम्मेदारी पूरी सोशल मीडिया पर वाहवाही मुफ्त,नीम से अधिक कढ़वी पर २००% सच्ची बात है,जनता हो या नेता या कोई और भी सब घड़याली आंसू रोते है,दर्द तो सिर्फ वह ही समझ सकता है जिस पर बीती हो।
नारी शशक्तीकरण,तीन तलाक़,महिलाओं को समान अधिकार सरकारी ढ़कोसला मात्र है क्या??प्रतिदिन हो रही घटनाओं की संख्या वृद्धि से तो यही प्रतीत होता है।
शर्म से झुक जाता है सर ,दिल कांप जाता है जब जब बलात्कार की किसी घटना पर सोया समाज जाग कर पुनः सो जाता है,अब तो यह रोज़ की बात हो चली है देश भर में जिसमे उत्तर प्रदेश का हाल सबसे निंदनीय है,दोषी किस को ठहराहे,वहशी मानसिकता को,समाज के ठेकेदारों को,प्रशासन को,सरकार को या फिर स्वयं ख़ुद हम सब को,कही न कही ज़िम्मेदार सब है अलग अलग स्वरूप में,
सवर्प्रथम
बलात्कारी:
इन पर लिखने का मन नही होता सिर्फ इन को भी उसही पीड़ा से अवगत कराने का मन करता है,तिल तिल कर मरे कहावत के अनुसार एक बलात्कारी के साथ उतना ही भयानक होना चाहिए जैसी हैवानियत उसके द्वारा किसी निर्दोष मासूम संग की गई हो,न वो जी सके न मर सके कुछ ऐसी सज़ा।मौत या आजीवन कारावास सब बहुत छोटी सज़ा है उस घिनौने अपराध के समक्ष जो यह किसी भी मासूम के साथ करते है,सज़ा का प्रावधान और सज़ा दोनों ऐसे हो जो सब के लिए मिसाल बने,करना तो दूर करने का विचार भी व्यक्ति के मन में भय उत्पन्न कर दे।
समाज के ठेकेदार:
समाज में बढ़ते बलात्कर रूपी कोढ़ के लिये समाज के ठेकेदारों की संदिग्ध भूमिका को भी नकारा नही जा सकता,बलात्कार पीड़ित और उसके परिवार पर कही लाज मर्यादा का वास्ता तो कही बाहुबल का प्रयोग(देश के कई प्रान्तों में खाँप पंचायतों द्वारा बलात्कार पर न्यायालय से अलग फैसले सुनना),जिस के कारण कई बार तो बलात्कारी को खुली छूट मिल जाती है और पुलिस को राहत क्योंकि पीड़िता द्वारा कोई प्रात्मिक सूचना दर्ज ही नही कराई जाती।अपनी रोटियां सेंकने के चलते कुछ अराजक तत्व बलात्कार की किसी भी घटना को धार्मिक रूप देने का प्रयास करते है,हम सब को ऐसे लोगों का एकजुटता के साथ विरोध भी करना चाहिए,बलात्कारी कोई भी हो किसी भी धर्म विशेष से आता हो,वह अपराधी है कानूनी और सामाजिक दोनों दृष्टिकोण से,सज़ा का हकदार न ही समर्थन न कोई संवेदना सिर्फ कठोर सजा।
प्रशासन:
आज दूसरी बार मेरे द्वारा लिखे जा रहे किसी लेख में प्रशासन के प्रति थोड़ी अपनी संवेदना रखता हूँ,बलात्कार जैसे अमानवीय अपराधिक कृतः पर पुलिस प्रशासन 75% पीड़िता के ही पक्ष में रहता है,जी मात्र 75% ही क्योंकि कई घटनाओं में प्रशासन के संलिप्ता संदिग्ध पाई गई है साथ ही कई बलात्कर एवं शारीरिक शोषण की घटनाओं में पुलिसकर्मियो की संलिप्तता के कारण स्वयं पुलिस महकमे को शर्मसार होना पड़ा है,घटना के सज्ञान में आने पर दोषियों पर कार्यवाही भी की गई है,परंतु अधिकतर पुलिस विभाग लाचार ही दिखता है,पुलिस अपना कार्य तो कर देती है दोषी की गिरफ्तारी के संग अच्छी खासी ख़ातिरदारी(ठोक ठुकाई) भी होती है,मेरे अनुसार जो ख़ाकी के भीतर मानवता को दर्शाती है,परंतु कानून के इन पालको के हाथ बंधे है,कभी ऊंची पहुँच वरना न्यायालय से सबूत और गवाहों के अभाव में दोषी फिर बाहर होते है नए शिकार की तलाश में।
जनता द्वारा चुनी गई सरकार:
आप सोच रहे होंगे बलात्कार की घटनाओं को सरकार कैसे रोक सकती है,सरकार में विराजमान क्या कर सकते है,इतनी बड़ी जनसंख्या वाला हमारा देश 790 संसंद,4120 विधायक,कई हज़ार पार्षद क्या कर सकते है,सब के पीछे पीछे तो घुमा नही जा सकता,किसी के मन में क्या है,कौन सदाचारी और कौन बलात्कारी जब तक पकड़ा न जाये कहना बहुत कठिन है,आप की सोच 100% सही है,मुमकिन नही है पर नामुमकिन तो बिल्कुल भी नही है,सरकार और उसके कारगुज़ार दृढ़निश्चय संग संकल्पित इच्छा शक्ति का संकल्प ले बलात्कर की घटनाओं पर मज़बूत कानून बनाये और सब सांसद में एक जुट होकर आधी आबादी को न्याय एवं सुरक्षा दिलाने के लिए पारित करे,जिस दिन ऐसा संभव हो गया बदलाव निश्चित है,पर सरकार की विवशता क्या है कोई भी हो भावी या पूर्वी सब घड़याली आंसू तो रोते है,खूब हो हल्ला भी होता है,पर आवश्यक कानून अधर में कही अटक जाता है(वर्तमान में सरकार द्वारा इस पर तेज़ी दिखाते हुए कई अहम फैसले लिए है),जब तक कोई ठोस कानून इस पर नही बनता सरकार की जवाबदेही बनी रहेगी और धरातल पर बलात्कार की घटनाओं में कमी आने के भी आसार कम ही है सरकारी आकड़ों के विपरीत।
हम और आप:
क्या आप जानते है बलात्कर और शारीरिक शोषण की घटनाओं में सबसे ज़्यादा संलिप्त कौन पाए जाते है(महिला आयोग और मानवाधिकार संस्था) की रिपोर्ट अनुसार पीड़िता के निकटिय लोग परिवारजन,रिश्तेदार,मित्र,परिचत आदि मुख्य रूप से दोषी पाए गए आरोपियों में 65% होते है,अब क्या कहे इसको बाहरी सुरक्षा के लिए तो शासन और प्रशासन को दोषी ठहरा कोसा जा सकता है परंतु घर का क्या भेड़िये तो भीतर ही घात लगाए बैठे है,बचाव कैसे करे हर एक को शक की नज़र से नही देखा जा सकता परंतु आंख बंद कर भी नही बैठे रह सकते है,बचाव का उपाय भी काफी हद तक हमारे ही हाथों में है,सब को अपनी ज़िम्मेदारी समझनी और उसका निर्वाहन करना होगा।
बचाव:
उपचार एक ही है सतर्कता,सब से व्यवहार कुशल रहे परंतु सतर्क रहें विशेष कर महिलाएं क्योकि ईश्वर ने नारी की छठी इंद्री को बहुत तीव्र बनाया है,अपने कोमल हृदय के चलते नारी को समाज में गऊ (श्रेणी)कहा जा सकता है पर किसी भी प्रकार के अप्रशियाचित व्यवहार और भाव को पुरुष के विपरीत स्त्री(स्पर्श,देखना,टोकना आदि) जल्द भांप जाती है,इस लिए हमारा सब से (महिलाओं)अनुरोध है कि सतर्कता अवश्य बनाये रखें, वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए सभी सुरक्षा के मापदंडों की पूर्ति स्वयं करें किसी भी परिचित अपरिचित पर निर्भर न हो,सुरक्षा के लिए जो भी वस्तुओं की आवश्यक्ता तो अपने आस पास अवश्य रखें, किसी भी प्रकार संदेह किसी पर भी होने पर परिवार के बड़े को सूचित करें साथ ही जो भी संसाधन आप के अनुकूल हो उसपर आप किसी भी घटना एवं संदेह को दर्ज करें(डायरी पर नोट,मोबाईल पर वीडियो आदि) जो कि भविष्य में आप के साथ साथ दुसरो के लिए भी उपयोगी साबित होगा,नारी जाति को अपनी सुरक्षा के प्रति ख़ुद जाग्रत होने पड़ेगा क्योकि गाँव की एक प्रचलित कहावत अनुसार"मोड़ी बचे आप से वरना लूट जावे अपन छाप से"(मोड़ी-लड़की,छाप-पिता)।
बीते कुछ दिनों में हुई घटनाओं का संछिप्त विवरण:
दिल्ली: 17 वर्षीय लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म, शिकायत के बाद पुलिस सीमा विवाद में उलझी रही
दिल्ली के सागरपुर इलाके में एक 17 वर्षीय लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म का मामला सामने आया है। आरोप के मुताबिक पांच युवकों ने लड़की को धोखे से घर से एक फ्लैट पर ले जाकर वारदात को अंजाम दिया।
यूपी: दो नाबालिगों से दुष्कर्म, पुलिस ने नहीं दर्ज किया केस।
धनघटा थाना क्षेत्र में दो अलग-अलग जगहों पर किशोरियों के साथ दुष्कर्म का मामला सामने आया है।
यूपी के बाँदा शहर कोतवली के क्योटारा मोहल्ला में रेलवे ट्रैक के किनारे 15 वर्षीय युवती की दुष्कर्म पश्चात हत्या।
कानपुर नगर में दहेज हत्या,धागा व्यापारी की पत्नी की हत्या को आत्महत्या का रूप देने की कोशिश।
यह तो उदहारण मात्र है,सम्पूर्ण आकड़े रोंगटे खड़े कर देने वाले है।
(लेख किसी भी धर्म जाति वर्ग को केंद्रित कर नही लिखा गया है)
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