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समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर था अवसादग्रस्त ...

मौत का जिम्मेदार किसी को नहीं ठहराया

चिनहट थानाक्षेत्र में एलएलबी के छात्र प्रांजल प्रजापति (23) ने एक हॉस्टल के कमरे में फांसी लगा ली। युवक का फोन न उठने पर परिवारीजन गाजीपुर से हॉस्टल पहुंचे तो हादसे की जानकारी हुई। सूचना पर पहुंची पुलिस को कमरे की छानबीन में एक डायरी मिली। इसमें छात्र ने अपनी अंतिम इच्छा जाहिर करते हुए लिखा था कि मेरा शरीर केजीएमयू के छात्रों को शोध के लिए दान कर दिया जाए। 

इंस्पेक्टर चिनहट सचिन कुमार ने बताया कि मूलरूप से गाजीपुर के मोहम्मदाबाद तमल पुरा निवासी बुजुर्ग किसान नारायन प्रजापति का बड़ा बेटा प्रांजल प्रजापति चिनहट के फैजाबाद रोड स्थित मां वैष्णो देवी कॉलेज में एलएलबी तृतीय वर्ष का छात्र था। वह चिनहट के यशोदा नगर इलाके में महानंद सिंह के हॉस्टल में रहता था। 

परिवारीजनों ने बताया कि दो दिन पहले प्रांजल की परीक्षा थी। मंगलवार रात को उसे कॉल की, लेकिन फोन नहीं उठाया और फिर फोन बंद हो गया। शक होने पर परिवारीजन रात को ही गाजीपुर से लखनऊ को निकले और सीधे हॉस्टल पहुंचे। परिवारीजनों ने जब प्रांजल के कमरे का दरवाजा खटखटाया तो कोई जवाब नहीं मिला। 

इसके बाद मकान मालिक के साथ मिलकर कमरे का दरवाजा तोड़ा तो अंदर प्रांजल का शव पंखे में गमछे के सहारे लटक रहा था। सूचना पर चिनहट पुलिस भी पहुंच गई। पुलिस ने पड़ताल कर शव पोस्टमार्टम को भेजवाया। छात्र ने डायरी में देहदान की बात लिखी है और अपनी मौत का जिम्मेदार किसी को नहीं ठहराया है। 

विवेकानंद के विचारों से था प्रेरित 

परिवारीजनों के मुताबिक, उनका बेटा होनहार था और विवेकानंद के विचारों से प्रेरित था। उसने 2018 में हिंदी शब्द संग्रह नाम से एक किताब भी प्रकाशित की थी। साथ ही वह एक किताब और लिख रहा था। वह जिंदगी में जो मुकाम हासिल करना चाहता था, वह उसे नहीं मिल पा रहा था। 

पहले भी कर चुका था खुदकुशी की कोशिश

दोस्तों के मुताबिक, प्रांजल पहले भी दो बार खुदकुशी की कोशिश कर चुका था। तीन माह पहले उसने नदी में कूदकर जान देने की कोशिश की थी। लेकिन आसपास के लोगों ने उसे बचा लिया था। वहीं, एक बार उसने नींद की गोलियां खा ली थीं। 

समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर था अवसादग्रस्त

प्रांजल के दोस्त के मुताबिक, वह पढ़ने में होशियार था, लेकिन समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर परेशान रहता था। अपने मन मुताबिक काम न करने के पीछे वह डिप्रेशन में था। राम मनोहर लोहिया में उसका इलाज भी चल रहा था।

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