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सरकार के लिए शराब है कुबेर का खजाना ...

शराब कमाई से सरकारें मालामाल, घर-परिवार बेहाल

महात्मा गांधी ने कहा था, ‘‘अगर मैं 1 दिन के लिए तानाशाह बन जाऊं, तो बिना मुआवजा दिए शराब की दुकानों व कारखानों को बंद करा दूंगा।’’ गांधीजी ने पूरी सूझबूझ के साथ यह बात कही थी, क्योंकि बरबादी का बड़ा कारण यह शराब ही है।

देश भर में उड़ी सोशल डिस्टेंसिग की धज्जियां, मय के मतवालों की मदहोशी भारी पड़ी कोरोना वीरो योद्धाओं लॉक डाउन का पालन कर रही हताश जनता की डेढ़ माह की तपस्या पर। मजबूरी लालच या सरकारी लापरवाही क्या कहा जाए इसको जिसके चलते लॉक डाउन के तीसरे चरण में जहाँ विद्या के मंदिर हो या कोई और धार्मिक स्थल सब संगीनों के साए में है, लगभग सभी व्यवसाय बंद है, जीवन रक्षा मानवता, राष्ट्रहित में आम जनता घरों पर रुकी है, आम जन जीवन अस्त व्यस्त हो चुका है, समाज का हर वर्ग तबका इससे अछूता नही रहा है। वही हर अपराध की जननी शराब की बिक्री को सरकार द्वारा छूट दे दी गई यह जानते हुए की कितने घातक हो सकते है इस के परिणाम इस कोरोना काल में, नियम क़ायदों की एक दिन में उड़ गई धज्जियां क्या होंगे इस के दुष्प्रभाव, जहाँ एक ओर बंदी में परिवारों की आर्थिक स्तिथि वैसे ही दयनीय है, सरकारी सहायता के बावजूद लोगो के खाने कमाने का ठिकाना नही है परंतु शराब के लती कैसे न कैसे पैसों का बंदोबस्त कर मदिरा पान अवश्य करेंगे चाहे अपराध करे या घरेलू हिंसा आदि कुछ भी। जिस के विभिन्न वीडियो दिन बीतते बीतते सोशल मीडिया पर प्रसारित भी होने लगे है।

कानपुर में शराब की रिकार्ड बिक्री

सूत्रों अनुसार मात्र एक दिन के चंद घंटों की सिर्फ कानपुर की लिखित शराब बिक्री 4 करोड़ से अधिक रही। कानपुर में 4.25 करोड़ की शराब बिकी,सबसे अधिक देसी 86 हज़ार लीटर,56 हज़ार अंग्रेजी शराब की बोतल,82 हज़ार बीयर केन/बोतल।  क्या वाकई शराब पर निर्भर है राज्यों की इकोनॉमी? जानें कितनी होती है कमाई?

शराब पर एक्साइज टैक्स राज्यों की आय का बड़ा स्रोत होता है

लॉकडाउन 3 में शराब कारोबार को खोल दिया गया है। इसको लेकर सोशल मीडिया पर काफी चर्चा है कि राज्यों की अर्थव्यवस्था शराब के भरोसे चल रही है। आइए जानते हैं कि क्या है सच्चाई? आखिर राज्यों की शराब से कितनी होती है कमाई?
इंडस्ट्री तो काफी समय से शराब की बिक्री खोलने के लिए भारी दबाव बना ही रही थी, हरियाणा जैसी कई राज्य सरकारें भी इसकी मांग कर रही थीं। राजस्थान सरकार ने तो लॉकडाउन के बीच ही आबकारी शुल्क बढ़ा दिया था, जैसे उसे पहले से ही यह पुख्ता उम्मीद हो गई थी कि लॉकडाउन 3 में शराब की बिक्री खोली जाएगी।

कैसे होती है राज्यों की कमाई

असल में राज्यों की कमाई के मुख्य स्रोत हैं- राज्य जीएसटी, भू-राजस्व, पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले वैट या सेल्स टैक्स, शराब पर लगने वाला एक्साइज और गाड़ियों आदि पर लगने वाले कई अन्य टैक्स। शराब पर लगने वाला एक्साइज टैक्स यानी आबकारी शुल्क राज्यों के राजस्व में एक बड़ा योगदान करता है।
शराब और पेट्रोल-डीजल को जीएसटी से बाहर रखा गया है। इसलिए राज्य इन पर भारी टैक्स लगाकर अपना राजस्व बढ़ाते हैं। हाल में राजस्थान सरकार ने शराब पर एक्साइज टैक्स 10 फीसदी बढ़ा दिया। राज्य में अब देश में निर्मित विदेशी शराब (IMFL) पर टैक्स 35 से 45 फीसदी तक हो गया है। इसी तरह बीयर पर भी टैक्स बढ़ाकर 45 फीसदी कर दिया गया है। यानी 100 रुपये की बीयर में 45 रुपया तो ग्राहक सरकार को टैक्स ही दे देता है।

इसके अलावा राज्यों को केंद्रीय जीएसटी से हिस्सा मिलता है। लेकिन केंद्र सरकार कई महीनों से राज्यों को जीएसटी का हिस्सा नहीं दे पा रही, जिसको लेकर राज्यों ने कई बार शिकायत भी की है।
राज्यों के राजस्व का बड़ा हिस्सा शराब और पेट्रोल-डीजल की बिक्री से आता है। लॉकडाउन की वजह से इन दोनों की बिक्री ठप थी, इस​ वजह से राज्यों की वित्तीय हालत खराब हो गई थी। हालत यह हो गई थी कि कई राज्यों को 1.5 से 2 फीसदी ज्यादा ब्याज पर कर्ज लेना पड़ा था।

कितनी होती है शराब से कमाई

ज्यादातर राज्यों के कुल राजस्व का 15 से 30 फीसदी हिस्सा शराब से आता है. शराब की बिक्री से यूपी के कुल टैक्स राजस्व का करीब 20 फीसदी हिस्सा मिलता है। उत्तराखंड में भी शराब से मिलने वाला आबकारी शुल्क कुल राजस्व का करीब 20 फीसदी होता है। सभी राज्यों की बात की जाए तो पिछले वित्त वर्ष में उन्होंने कुल मिलाकर करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये की कमाई यानी टैक्स राजस्व शराब बिक्री से हासिल की थी।
शराब की बिक्री से वित्त वर्ष 2019-20 में महाराष्ट्र ने 24,000 करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश ने 26,000 करोड़, तेलंगाना ने 21,500 करोड़, कर्नाटक ने 20,948 करोड़, पश्चिम बंगाल ने 11,874 करोड़ रुपये, राजस्थान ने 7,800 करोड़ रुपये और पंजाब ने 5,600 करोड़ रुपये का राजस्व हासिल किया था। दिल्ली ने इस दौरान करीब 5,500 करोड़ रुपये का आबकारी शुल्क हासिल किया था। राज्य के कुल राजस्व का यह करीब 14 फीसदी है। बिहार और गुजरात में शराब बिक्री पर प्रतिबंध लगा हुआ है।
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देश में लॉकडाउन लागू है। वहीं 4 मई यानी आज से लॉकडाउन 3.0 की शुरुआत हो रही है। इस लॉकडाउन की मियाद 17 मई तक की है। हालांकि इस बार लॉकडाउन में केंद्र सरकार की तरफ कई रियायतें भी दी गई हैं।लॉकडाउन को 17 मई तक बढ़ाने के साथ ही केंद्र सरकार ने कई आर्थिक गतिविधियों में छूट का ऐलान किया है। हालांकि कुछ सेवाओं पर पाबंदी पहले की तरह ही जारी रहेंगी। वहीं दूसरी ओर कई राज्य सरकारें भी लॉकडाउन में केंद्र के फैसले के बाद रियायतें दे रही हैं।

गुजरात, बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हो चुकी है शराबबंदी

जब से योगी आदित्यनाथ की सरकार ने यूपी में अपनी सरकार बनाई थी, लोगों की उम्मीदें बढ़ गई थी। उनसे उम्मीद करने वालों में वे महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं, जिनकी जिंदगी इस शराब की वजह से नर्क बनाकर रह गई है। ऐसी महिलाएं व बच्चे रोज जगह-जगह प्रदर्शन कर रहे थे। शराब की दुकानों को जला रहे थे। योगी सरकार से अपील कर रहे थे और अभी कर रहे है कि शराब पर प्रतिबंध लगाया जाए, लेकिन हर बात पर फौरन जनता की सुनने वाले योगी आदित्यनाथ इस मुद्दे पर अभी भी कोई राय नहीं बना पाए हैं कि प्रदेश में शराब पर प्रतिबंध लगाना है या नहीं उल्टा कोविड 19 के चलते किये गए लॉक डाउन के तीसरे चरण में सरकारी ख़ज़ाने की पूर्ति के लिए मधुशालाओ को निर्धारित समय के लिए खोलने की छूट देश भर में दी जा रही है। लिहाजा उनकी तरफ से इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम के बारे में सोचना आसमान में तारों की कुल संख्या बताने जैसा ही है।
 
सवाल यह है कि आखिर कोई सरकार शराब पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाती। इसका जवाब इस तथ्य में छिपा है कि शराब किसी भी सरकार के लिए कमाई का दूसरा सबसे बड़ा जरिया है। जाहिर है कि कोई भी सरकार कमाई के इस सबसे बड़े स्रोत को खुद अपने ही हाथों बंद नहीं करना चाहती। तथ्य यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार को सबसे अधिक आय वाणिज्य कर से आता है। दूसरे नंबर पर शराब यानी आबकारी विभाग से कमाई होती है, जिससे सरकार सड़कें भी बनवाती है और बच्चों के लिए स्कूल भी बनवाती है। गरीब हों या महिलाएं, सबके कल्याण की योजनायें इन्हीं पैसों से चलती हैं।

कमाई का जरिया नहीं खोना चा‍हती सरकार

जाहिर है कि अगर सरकार कमाई के इतने बड़े स्रोत को बंद करेगी तो उसके लिए कल्याणकारी योजनाओं के लिए धन की कमी हो जाएगी, जिससे सरकार उसी जनता के बीच अलोकप्रिय हो जाउगी, जो आज शराब पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग कर रही है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ शराब की कमाई से ही सरकार के कामकाज चलते हैं। आखिर गुजरात सरकार लंबे समय से बिना शराब की आय के ही अपना कामकाज चला रही है। अब इस लिस्ट में बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ भी शामिल होने जा रहे हैं। इससे योगी आदित्यनाथ पर शराब पर प्रतिबंध लगाने का दबाव बढ़ना स्वभाविक तो है परंतु ऐसा होगा यह वर्तमान स्थिति मे तो शून्य ही प्रतीत होता है।

सरकार के लिए शराब है कुबेर का खजाना

फिलहाल अगर कमाई की बात करें तो वर्ष 2013-14 में आबकारी विभाग से 12,500 करोड़ रुपये की कमाई का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन सरकार को इस मद से 11,600 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ। इस मद से आय में कितनी तेजी से इजाफा हुआ है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2008-09 में सरकार ने शराब से 4,220 करोड़ की कमाई की थी जो 2012-13 में 9782 करोड़ रुपये हो गई थी। यह आंकड़ा 2013-14 में 11,600 करोड़ रुपये पहुंच गया था।

इसी से जाहिर होता है कि कोई भी सरकार इस कमाई को खत्म क्यों नहीं करना चाहती। अगर सरकार इसे कम करे तो उसके लिए कल्याणकारी योजनाओं के लिए धन जुटाना मुश्किल हो जाएगा। जिस का भुगतान उसे भावी चुनाव में भुगतना पड़ सकता है क्योंकि चुनावी मंचो से किए गए वादे एवं घोषणाओं की पूर्ति इन सब की कमाई से ही संभव होती है। यही कारण है कि कोई सरकार ये जोखिम नहीं उठाना चाहती। हालांकि सरकार पर किसी अन्य मद से कमाई कर इस मद को खत्म करने का दबाव लगातार बनाया जाता रहा है।


आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2013-14 में राज्य में 23,175 शराब की फुटकर दुकानें थीं। इसमें सबसे ज्यादा 13,640 दुकानें देशी शराब की हैं। अंग्रेजी शराब की दुकानों की संख्या 5093 है तो बियर की दुकानों की संख्या 4,043 है। इसके अलावा राज्य में 396 मॉडल शॉप थीं। जो कि बीते वर्षों में कई गुना अधिक हो चुका है जिस की अभी कोई आधिकारिक एवं विभागीय पुष्टि उपलब्ध नही है।

कॉलेज कम, शराब की दुकानें ज्यादा

सामान्य तौर पर हम ये मानकर चलते हैं कि हर घर में एक या दो पढ़ने वाले बच्चे होते हैं इसलिए स्कूलों की संख्या ज्यादा होनी चाहिए जबकि शराब पीने वाले कम होते हैं इसलिए शराब की दुकानें कम होंगी, लेकिन सच्चाई इसके ठीक उलट है। उत्तर प्रदेश सरकार के ही 2013-14 के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में शराब की 23,175 दुकानें थीं जबकि ठीक इसी अवधि में राज्य में मात्र 20720 कॉलेज ही थे।

बच्‍चे पढ़ें न पढ़ें पर शराब हर कीमत पर चाहिए

समाज की स्पष्ट कुरीति है कि समाज में एक ऐसा वर्ग है, जिसे शराब तो किसी भी कीमत पर चाहिए होती है, चाहे उसके बच्चे स्कूलों में पढ़ने जा रहे हों या नहीं। ऐसा सिर्फ गरीब तबके में ही ज्यादा होता हो ऐसा भी नहीं है। संपन्न तबके में भी लोग बच्चों की पढाई तभी तक आगे बढ़ाते हैं जब तक कि वह कमाई करने या व्यापार संभालने के काबिल नहीं हो जाते।

बच्‍चों में तेजी से बढ़ रही नशाखोरी

मौजूदा सरकारी ढुलमुल नीतियों के कारण तेज रफ्तार से लोग नशे की गिरफ्त में आ रहे हैं और नशाखोरी से जुड़े अपराधों में इजाफा हो रहा है। राज्य में बच्चों में नशाखोरी बड़ी तेजी से बढ़ रही है, और एक बार शुरू करने के बाद बहुत कम ही लोग हैं जो इसके लत से बाहर निकल पाते हैं। जाहिर है कि ऐसे में प्राथमिकता में जानलेवा शराब ही होती है, स्कूल या कॉलेज नहीं।

 

 

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