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बतारीख़ : 17,18,19 को मनाया जाएगा,बरोज़: बुध, जुमेरात, जुमा ...

 

उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव में विश्व प्रसिद्ध क़स्बा सफ़ीपुर गंगा-जमुनी तहज़ीब की एक अनोखी मिसाल है। यह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 64 किलोमीटर दक्षिण ओर स्थिति है। यह धरती एक ज़माने से सूफ़ी संतों का मसकन रही है इसलिए इसे "मदीनतुल औलिया" के नाम से भी जाना जाता है। यहां इब्राहीम शाह शर्क़ी के दौर एक सूफ़ी संत जिनका नाम हज़रत मौलाना शाह अकरम था तशरीफ़ लाए , उस समय इस बस्ती का नाम साईंपुर हुआ करता था। आपने फ़रमाया था कि मेरी औलाद में एक बुजु़र्ग ऐसे होंगे जिनके नाम से ये बस्ती जानी और पहचानी जाएगी। आपके परपोते हज़रत ख़्वाजा अब्दुस्समद अलमारूफ़ हज़रत मख़दूम शाह सफ़ी अलहिर्रहमा के नाम से इस बस्ती का नाम सफ़ीपुर हुआ।
हज़रत मख़दूम शाह सफ़ी अलहिर्रहमा के वालिद (पिता) का नाम हज़रत मौलाना इल्मुद्दीन अलहिर्रहमा था, जो एक सोहरवर्दी बुज़ुर्ग थे। हज़रत मख़दूम  शाह सफ़ी ने शुरुआती तालीम ( (प्रारंभिक शिक्षा) अपने वालिद माजिद से हासिल की। फिर आला तालीम (उच्च शिक्षा) के लिए खैराबाद तशरीफ़ ले गए और मख़दूमे कबीर हज़रत मख़दूम शेख़ सअदुद्दीन खैराबादी अलहिर्रहमा (बड़े मख़दूम साहब) से मुरीद होकर उन्हीं के मदरसे में पढ़ने लगे। एक दिन मख़दूम शेख़ सअद ने बुलाकर नाम पूछा और पूछा कहां रहते हो? वालिद साहब का क्या नाम है? आपने बताया मेरा नाम अब्दुस्समद उर्फ सफ़ी बिन मौलाना इल्मुद्दीन है, और मैं साईंपुर में रहता हूं। मख़दूम शेख़ सअद हज़रत मौलाना इल्मुद्दीन को बखूबी जानते थे। फ़रमाया तुम हमारे पास पढ़ा करो, किसी और के पास मत पढ़ो। हम खुद तुम्हें तालीम देंगे। उस दिन से आप हज़रत मख़दूम शेख़ सअद की ख़िदमत में हाज़िर रहने लगे और उन से ही तालीम हासिल करने लगे। कुछ रोज़ बाद फ़रमाया कि तुम खाना बावर्ची खाने में मत खाया करो बल्कि हमारे साथ खाया करो। हज़रत मख़दूम शेख़ सअद रोज़ा करते, अक्सर फाक़ा कशी करते और जब तक कोई मेहमान न आता खाना न खाते। हज़रत मख़दूम शाह सफी भी आपके साथ खाना खाने लगे और भूख प्यास की सख्ती (मुश्किल) बर्दाश्त करने लगे, साथ साथ मख़दूम शेख़ सअद की ख़िदमत किया करते और इसमें सुस्ती या कोताही भी नहीं फरमाते। अपनी पाकीज़ह सीरत, इल्मो फज़्ल और ज़ुह्दो तक़वा की वजह से बहुत जल्द ही अपने पीर (मख़दूम शेख़ सअद) की बारगाह में मक़बूल (प्रिय) हो गये, और जब मख़दूम शेख सअद ने ख़िलाफ़त से नवाज़ा तो सारे ख़ुलफा से मुक़द्दम (सर्वश्रेष्ठ) हो गए। मख़दूम शेख़ सअद की ख़ानक़ाह में बैठकर लोगों को मुरीद करते। लोगों ने शेख़ सअद से शिकायत की कि शेख़ सफ़ी ख़ानक़ाह का अदब नहीं करते हैं और आपके मौजूद होते हुए लोगों को मुरीद करते हैं , हज़रत मख़दूम शेख़ सअद ने फ़रमाया तुम उनके मर्तबे को नहीं जानते वो मेरी मंज़िल से ऊपर मेरे पीर के मक़ाम को पहुंच गए हैं। अपने पीर हज़रत मख़दूम शेख़ सअद के हुक्म पर आप साईंपुर तशरीफ़ लाए और कुछ ही दिनों में बस्ती के मकीनों (रहने वालों) के महबूब व मतलूब बन गये। आपकी सादा दिली और ख़ुश ख़ल्क़ी  के क़िस्से ख़ासोआम में मशहूर हो गए। आप दिन रात अल्ल्लाह की इबादत में या ज़रुरतमंदों के बीच में मशग़ूल रहते। आप बस्ती वालों के लिए एक मसीहा बन कर आए। दूर-दूर से मुरादें लेकर आने वालों की भीड़ लगी रहती। आप बिना किसी भेदभाव के हर एक का दुख सुनते और सबकी मुरादें पूरी करते। धीरे-धीरे आपके चाहने वाले बढ़ते गए, यहां तक आपसे हर धर्म के मानने वालों ने आपसे अक़ीदत व मोहब्बत के इज़हार में बस्ती के मकीनों ने बस्ती का क़दीम नाम साईंपुर से बदलकर सफ़ीपुर रख दिया।और यहीं से सिलसिला-ए-चिश्तिया, निज़ामिया और मीनाइया के नये सिलसिले की बुनियाद पड़ी जिसे "सिलसिला-ए-सफ़विया" कहा जाता है।
                
उर्स-ए-मुक़द्दस हज़रत ख़्वाजा अब्दुस्समद अलमारूफ़ हज़रत मख़दूम शाह सफ़ी शाहे विलायत सफ़ीपुरी अलहिर्रहमा। बतारीख़ : 17,18,19 को मनाया जाएगा ,बरोज़: बुध, जुमेरात, जुमा।

17 अगस्त 2022 बरोज़ बुध : बाद नमाज़े फज्र कुरआन ख्वानी, जल्सा-ए-ईद मिलादुन्नबी सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम (सुबह 8 बजे), गुस्ल मज़ारे मुबारक (10 बजे दिन), शब की महफिल (रात 10:30 बजे), बाद नमाज़े इशा चादर गागर शरीफ उसके बाद महफिले समा और पहला कुल (रात 3:30 बजे)।
18 अगस्त 2022 बरोज़ जुमेरात : बाद नमाज़े फज्र कुरआन ख्वानी,  क़ुल शरीफ की महफिल (बाद नमाज़े ज़ोहर), कुल शरीफ (बाद नमाज़े अस्र),फातिहा खास (बाद नमाज़े मग़रिब),  ज़िक्रे शोहदाए कर्बला (बाद नमाज़े इशा)।
19 अगस्त 2022 बरोज़ जुमा: बाद नमाज़े फज्र कुरआन ख्वानी, महफिले समा व क़ुल शरीफ हज़रत नूर मियां रहमतुल्लाह अलैह (दारूल अमान में, 11 बजे दिन), महफले समा(बाद नमाज़े जुमा) व क़ुल शरीफ जुमला साहिबे सज्जादगान (बाद नमाज़े अस्र)।

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