17 पिछड़ी जातियों से संबंधित कुछ जातियां पहले से ही एससी की ...
पिछड़ी जातियों को एससी का दर्जा देने पर कोर्ट के निर्णय का इंतजार करेगी प्रदेश सरकार
यूपीःपिछड़ी 17 जातियों को एससी का दर्जा देने पर प्रदेश सरकार ने फिलहाल ‘वेट एंड वॉच’ की नीति पर चलने का फैसला किया है। तय किया है कि न्यायालय के निर्णय का इंतजार किया जाए। तय किया गया है कि अदालत के फैसले को देखकर ही केंद्र सरकार को इन जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रस्ताव भेजने या न भेजने का निर्णय किया जाए।
सूत्रों के अनुसार, इन 17 अति पिछड़ी जातियों को एससी का प्रमाण पत्र जारी करने के आदेश पर केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावर चंद गहलोत के सवाल उठाने के बाद प्रदेश सरकार ने इस मुद्दे पर विधि विशेषज्ञों से राय ली है। केंद्र सरकार से भी इस मामले में इंतजार की सलाह मिली है। इस फैसले से एससी में शामिल जातियों के विरोध को देखते हुए भी प्रदेश सरकार ने इस मुद्दे को बहुत तूल न देने का फैसला किया है।
ये है मामला
मुलायम सरकार ने 2004 में इन 17 जातियों को एससी में शामिल करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजकर पिछड़ी जातियों में सेंधमारी की कोशिश की थी। लेकिन केंद्र की तत्कालीन सरकार जब तक कोई फैसला करती उससे पहले ही मुलायम सरकार चली गई और मायावती सत्ता में आ गईं और उन्होंने प्रस्ताव को वापस ले लिया। इसके बाद 2013 में अखिलेश सरकार ने फिर यह प्रस्ताव केंद्र को भेजा। वर्ष 2014 में रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया ने इसे खारिज कर दिया। लेकिन तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव ने 2016 में केंद्र की अनुमति के बगैर ही इन 17 जातियों को एससी में शामिल करने की घोषणा कर दी। मामला न्यायालय में पहुंच गया। न्यायालय ने इन जातियों को प्रमाण पत्र जारी करने पर रोक लगा दी, लेकिन अगली सुनवाई 29 मार्च 2017 को यह रोक हटा ली और कहा कि इन जातियों को जारी प्रमाण पत्र न्यायालय के फैसले के अधीन होंगे। इसी के मद्देनजर प्रदेश सरकार ने बीती 24 जून को सभी डीएम-कमिश्नर को इन 17 जातियों को एससी का प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश दे दिया जिस पर बसपा ने राज्यसभा में आपत्ति उठा दी।
‘अधिकारियों ने मामला उलझा दिया’
लविवि के राजनीति शास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. एसके द्विवेदी कहते हैं कि अधिकारियों के कारण इस तरह की परिस्थिति पैदा हुई है। इस तरह का आदेश करने से पहले अधिकारियों को इस मामले में कानूनी राय लेकर प्रक्रिया समझ लेनी चाहिए थी। अधिकारी यह सावधानी बरतते तो किरकिरी न होती।
राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव लौटनराम निषाद कहते हैं कि इन 17 पिछड़ी जातियों से संबंधित कुछ जातियां पहले से ही एससी की सूची में शामिल हैं। सरकार को इन जातियों को एससी की सूची में पहले से शामिल जातियों का पर्यायवाची बताते हुए राज्यपाल को प्रस्ताव भेजना चाहिए था और आग्रह करना चाहिए था कि वह इन जातियों को पिछड़ी जातियों की सूची से निकाल दें। तब गड़बड़ न होती। लेकिन अधिकारियों ने ऐसा न करके सीधे शासनादेश जारी कर मामला उलझा दिया।
ये है प्रक्रिया
राज्य सरकार अगर किसी जाति को एससी में शामिल करना चाहती है तो संविधान के अनुच्छेद 341 (1) के अनुसार प्रस्ताव तैयार करेगी। यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय को भेजा जाएगा। मंत्रालय इसे रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया और केंद्रीय अनुसूचित जाति आयोग को भेजेगा।
दोनों से सहमति मिलने के बाद सरकार संबंधित जाति को एससी में शामिल करने का विधेयक संसद में लाएगी। जिसे लोकसभा और राज्यसभा में मंजूरी मिलने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद संबंधित जाति एससी की सूची में शामिल होने की हकदार हो जाएगी। राज्य सरकार सिर्फ सिफारिश कर सकती है। निर्णय केंद्र सरकार करेगी। - प्रो. ओएन मिश्र, पूर्व विभागाध्यक्ष एवं डीन विधि संकाय लविवि.
सिर्फ आरक्षण का बंटवारा हो जाए तो मिल जाएगा न्याय
किसी नई जाति को एससी में शामिल करने की प्रक्रिया का पालन होना चाहिए। पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करके नया विवाद खड़ा करने के बजाय अगर पिछड़ों को मिल रहे 27 फीसदी आरक्षण को मंडल कमीशन के वरिष्ठ सदस्य एलआर नायक के सुझाव के अनुसार खेतिहर पिछड़ी जातियों यादव, कुर्मी, गुर्जर और जाट को 12 और शेष पिछड़ों अर्थात खेतिहर मजदूर पिछड़ी जातियों को 15 फीसदी में बांट दिया जाए तो सभी को आरक्षण का लाभ मिल जाएगा।
सूत्र- डॉ. राम सुमिरन विश्वकर्मा, राष्ट्रीय अध्यक्ष मोस्ट बैकवर्ड क्लासेज ऑफ इंडिया
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