पत्रकार का न कोई मान नही बचा कलम का कोई सम्मान ...
कलम से कागज़ कम पत्रकारों के कफन ज़्यादा सुर्ख़ होंगे
कानपुर: बीती रात कानपुर अंतरराज्यीय झकरकट्टी बस अड्डे पर एक वरिष्ठ पत्रकार को दो चार होना पड़ा समाज की उस कड़वी सच्चाई से जिस का भयावक कृतिम चेहरा स्वयं वह अपने लेखों द्वारा उजागर किया करते है। जी हाँ भ्रष्टाचार के राक्षस के अनुयायियों के प्रकोप का भाजन होते होते बचें वरिष्ठ पत्रकार नदीम सिद्दीकी जो की पत्रकारों के सबसे बड़े एवं संगठित संस्था आईरा के उच्च पदाधिकारी भी है। दोष मात्र इतना निरंतर ख़बर पर खबर चलाए जा रहे वह भी ऐसी जगह की जो सोने के अंडे देने वाली मुर्गी से कम नही वह भी बिना किसी लालच सुनने में अटपटा है पर सत्य है यही साफ सुतरी छवि पत्रकार महोदय की आज दुश्मन बन बैठी पर समय रहते पत्रकार महोदय की छठी इंद्री काम कर गई और मौक़े की नज़ाकत भाप पत्रकार महोदय झपटा झपटी के बीच अपने आप को निकाल लाए वरना साक्ष्यों एवं प्रत्यक्षदर्शियों अनुसार मामला किसी भी पल गंभीर रूप ले सकता था।
मामला
आप की जानकारी के लिए बातते है कि बीते कई महीनों से विभिन्न संस्थानों के पत्रकारों द्वारा एकजुट होकर बस अड्डे पर हो रहे अनगिनत गलत कार्यो पर खबरें चलाई जा रही थी जिसका व्यापक असर भी देखने को मिला परंतु जिस के चलते इन गलत कार्यो में लिप्त भ्रष्टाचारियों के गले सूखने लगें। लग गए सब साम दाम दंड भेद के दाव खेलने लगे जिस में उनको कुछ हद तक आंशिक सफलता भी मिली परंतु जिस प्रकार कहते है कि भ्रष्टाचार की जड़े बहुत गहरी है बस अड्डे पर उसही प्रकार हर शख्स के ज़मीर की कीमत लगा पाना भी मुमकिन नही उन मे से ही एक है वरिष्ठ पत्रकार नदीम सिद्दीकी बेबाक और निडर कलम चलेंगी तो स्याही बारूद का काम करेंगी हर गलत के ख़िलाफ़। अपनी खबरों के माध्यम से नदीम जी द्वारा बस अड्डे पर चल रहे गोरखधंधों पर सीधा प्रहार कर दिया जिस से बौखलाए एक का बारह करने वालों द्वारा आज पत्रकार महोदय को काफ़ी हद तक निपटाने का एक असफल प्रयास भी किया गया।
प्रमुख बिंदू
जिस प्रकार संबंधित व्यक्तियों द्वारा साक्ष्यों अनुसार वाणी एवं शारीरिक मुद्रा और भावों का प्रयोग पत्रकार के समक्ष किया गया, कोई भी समझदार व्यक्ति साफ बता सकता है कि इनका संचालन कोई बहुत ही मांझा हुआ खिलाड़ी कर रहा है।। किस प्रकार कोई सरकार के अंतर्गत आने वाले कार्य क्षेत्र में इतनी निर्भीकता से एक पत्रकार को डरा धमका सकता है वह भी एक व्यापारी बात कुछ हज़म नही होती। कहाँ से आई इतनी हिम्मत कोई भय नही गलत होने के उपरांत भी स्वय अपने मुख से सब कुछ चीख चीख़ कर कह रहा है क्यो नही उसको किसी भी प्रकार की कार्यवाही होने का भय न टेंडर निरस्त होने का न ही पुलिस की कार्यवाही का यह सब तो किसी और ही इशारा करते है जो कि जांच का विषय है।
विचारणीय
वर्तमान परिस्थितियों एवं घटनाओं पर आप ध्यान केंद्रित करें तो समझने में क्षण भी व्यतीत नही होगा पत्रकारों एवं पत्रकारिता का आज समाज में क्या स्तर एवं सम्मान है किस नज़र से देखे जाते है पत्रकार क्या है उनकी इस दुर्दशा का कारण क्यो नही रहा अपराधियो भ्रष्टाचारियों में कलम का भय, क्यो सूख और थम गई उनके कलम की रफ़्तार समाज की कुरीतियों के विरुद्ध।
कटु सत्य
आज पत्रकारों एवं पत्रकारिता की इस दुर्दशा का कारण सर्व प्रथम स्वय पत्रकार बिरादरी ही है जो कि बंदर बाट छोटे बड़े मान्यता प्राप्त पत्रकार आदि की ओछी मानसिकता के कारण अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने पर मजबूर है। एकता की शक्ति की अनदेखी चंद रुपयों की चमक संग वर्चस्व की होड़ भी हम को अपने उद्देश्य से भटकाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, रही सही कसर सरकारी जी हुज़ूरी करना न झुकने पर पत्रकारों की अनदेखी एवं दमन का कुचक्र जिसके अनगिनत उदाहरण हम सब के सामने है। पत्रकारों के विरुद्ध निरंतर बढ़ती आपराधिक घटनाओं से सबक ले समय रहते हम सब को एक सँगठित शक्ति के रूप में कार्य करना ही होगा नही तो वह दिन दूर नही जब कलम से कागज़ कम पत्रकारों के कफन ज़्यादा सुर्ख़ होंगे।
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