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बढ़ते जल स्तर के संग दफनाई लाशों ने खोली सिस्टम की पोल ...

लोग बोले- दो-ढाई सौ लाशें उतराती दिखीं, एसडीएम बोले- एक भी शव नहीं

उन्नाव से एक बार फिर गंगा किनारे से चौंकाने वाली तस्वीरें सामने आई हैं। बारसगबर थाना क्षेत्र के बक्सर घाट के गंगा किनारे जिन शवों को दफनाया गया था, अब यही शव गंगा नदी में उतराते नजर आ रहे हैं। दरअसल, बीघापुर तहसील के बक्सर घाट में जलस्तर बढ़ने से बीच में बना टीला डूब गया और तेज कटान शुरू हो गया। इससे शव और अंग अवशेष पानी में उतराने लगे, इसे देख लोग हैरान हैं।

जलस्तर बढ़ा तो ऊपर आ गए शव

बक्सर घाट पर 15 दिन पहले नदी के किनारे शव दफनाए गए थे। पानी बढ़ने से यह ऊपर आ गए। आसपास के गांव के लोगों का कहना है कि कुछ दिन पहले जिस तरह का मंजर था, कुछ वैसा अब फिर नजर आने लगा है।

एसडीएम ने शव तैरने की बात नहीं मानी

एसडीएम बीघापुर दया शंकर पाठक ने बताया कि क्षेत्राधिकारी बीघापुर, थाना प्रभारी के साथ हम लोगों ने संयुक्त रूप से निरीक्षण किया है। कोई भी शव गंगा नदी में बहता हुआ नहीं पाया गया। दस मिनट पहले ही पूरे क्षेत्र का निरीक्षण किया है। वीडियो भी दिखा सकता हूं। किसी स्थल पर कोई शव गंगा नदी में बहता हुआ नहीं पाया गया है।

एक साथ 6 लाशें बह रहीं

बक्सर घाट के स्थानीय निवासी राहुल ने बताया कि जिन शवों को जलाना होता है उसे घाट में जलाते हैं। बाकी जिन शवों को दफनाना होता है उसके लिए आगे जगह हैं। एक साथ 5 से 6 लाशें बहकर जा रही हैं। कल से अब तक दो-ढाई सौ लाश बह गई होंगी। 3 फुट का गड्ढा खोदकर ही शव डाल दिया है। इसलिए उतराने लगी हैं। एसडीएम आए थे, एसओ आए थे।

रौतापुर घाट पर भी दिखे शव, कोरोना से इनकार

उन्नाव सदर तहसील अंतर्गत हाजीपुर चौकी से कुछ ही दूर स्थित रौतापुर के बक्सर घाट पर अलग दृश्य देखने को मिला, लेकिन यहां के शव कोविड के नहीं बताए जा रहे हैं। स्थानीय पंडा का कहना है कि शव बहाए नहीं गए हैं।

एक से डेढ़ साल के लग रहे हैं। कोरोना संक्रमितों के शव नहीं हैं। वहीं, रौतापुर प्रधान सर्वेश कुमार ने बताया कि करीब 40 गांव के लोग आते हैं। उनमें से कुछ शव को जलाते नहीं हैं। उनको ऐसे ही दफनाया जाता है।

एसडीएम सदर बोले- 12 से 14 महीने के हैं शव

एसडीएम सदर सत्यप्रिय सिंह ने बताया कि 12-14 महीने में ये शव दफनाए गए हैं, यहां पर जो पंडे हैं, इनके पास हर दिन आने वाले शव का विवरण रहता है, उनके पते के साथ लगभग 3 दर्जन से अधिक गांव के अंतिम संस्कार की क्रिया की जाती है। पारंपरिक मान्यताओं के साथ कुछ यहां कबीर पंथी हैं। उनके शव दफनाए जाते हैं।

इसके अलावा अविवाहित बच्चे और जिनका यज्ञोपवीत संस्कार नहीं हुआ होता है, उन लोगों के शव यहां दफनाए जाते हैं।

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