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लेख मजदूरों किसानों बीमारी से पीड़ित वर्ग को समर्पित ...

 सार 

लेख समाज के दिहाड़ी श्रमिकों, किसानों बीमारियों से ग्रसित असहाय अक्षम वर्ग को समर्पित है। इसका किसी धर्म राजनीतिक दल व्यक्ति विशेष एवं सरकारी तंत्र से कोई सहोकार नही है, यह लेख मात्र हमारे सभ्य समाज की वर्तमान परिस्थितियों को दर्शाने का एक उपयोग है जो एक व्यक्तिगत सोच है। जहाँ एक और सम्पूर्ण विश्व के साथ हमारा देश कोविड 19 नामक महामारी की चपेट में है, जिस की रोकथाम के लिए सम्पूर्ण विश्व में हर पटल पर युद्धस्तर पर कार्य एवं रोकथाम के लिए विभिन्न प्रयोग किये जा रहे है जिन के सकारात्मक आशावादी संकेत काफ़ी हद तक विश्व सहित हमारे भारत देश में मिलने प्रारंभ हो चुके है जिस के लिए देश के कोरोनवीरो को सम्पूर्ण देश की ओर से मेरा शत शत नमन एवं साधुवाद। परंतु इस के साथ ही एक गंभीर समस्या जो आंशिक समय की विपदा कोरोना वायरस से भी कही अधिक भयावक है जिस का न कोई समय निर्धारित है और न ही कोई औषधिक उपचार वह है धार्मिक द्वेष जो कि देश के दो वर्गों के बीच एक ऐसी खाई के रूप में परिवर्तित होता जा रहा है जिस का पाटना अतिआवश्यक है, क्योंकि अगर सभ्य समाज द्वारा इस पर ग़ौर नही किया गया तो मीडिया अनुसार अपने मुंह कितना भी मियां मिठ्ठू बन लिया जाए परंतु सत्य कटु है पर हम विश्व पटल पर कभी भी वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों अनुसार विश्व गुरु बनने के पथ पर अग्रसर नही हो सकते जिस के लिए न सिर्फ धर्म के ठेकेदार राजनीतिक मंशा बल्कि स्वयं हम और आप भी ज़िम्मेदार है।

 विस्तार

"आज मै अपने लेख को मर्यादा फिल्म का राजेश खन्ना से फिल्माया गए मुकेश के गीत की दो पंक्तियों से प्रारंभ कर रहा हूं, जुबां पे दर्द भरी दास्तां चली आई बहार आने से पहले खिजां चली आई, आज समूर्ण विश्व के साथ हमारा देश भी एक विकट समस्या कोविड 19 महामारी के प्रकोप से पीड़ित हो विभिन्न जटिल समस्याओं के चलते बुरे समय से गुजर रहा हैं। कोरोना वायरस के भंयकर प्रकोप शोर पूरे विश्व में मचा है, जहाँ सम्पूर्ण विश्व में इस महामारी के प्रकोप के चलते त्राहि त्राहि का शोर गूंज रहा है वही हमारे देश में सरकारी तंत्र एवं जनता की सूझबूझ एवं सहयोग के चलते काफ़ी कुछ राहत देने वाले शुभ समाचार प्राप्त हो रहे है कुछ एक घटनाओ को छोड़ कर। सरकारी तंत्र की दिनों रात की मशक्कत कोरोनवीरो के अथक प्रयास ( डॉक्टर्स, पुलिस, समाजसेवी, वॉलेंटियर्स आदि) एवं काफ़ी हद तक जनता का सहयोग हमारे देश में कोरोना नामक अदृश्य शत्रु से निपटने में काफ़ी हद तक सफ़ल हो रहे है, परंतु जहाँ हम कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में सफल हो रहे है वही दूसरी ओर हम एक ऐसी लड़ाई की ओर बढ़ चले है जो कोरोना के विरुद्ध जंग से कही अधिक समय लेने वाली है साथ ही इस महामारी के आगमन के साथ ही किसी भी राष्ट्रीय आपदा की हमारी तैयारी की सम्पूर्ण पोल खोल के रख दी है।


जहां देश में लोग में सकारात्मक संकेत मिल रहें हैं क्योंकि हमारे देश ने दुनिया को देखते हुए न चलकर अपने समीकरण से ही सोच रहे है। जहां रोज मर्रा के कमाने के वाले दबी जुबां में दर्द भरी कराहती हुए आवाज जो सिर्फ गले तक सीमित है और  लॉक डाउन के पश्चात बहार आने की ललक में बैठे हैं, बहार तो दूर की बात परेशानियां आगे और पीछे मुँह खोले खड़ी है।  वर्तमान समय में कोरोनावायरस के बढ़ते प्रकोप से जहां मौजूदा हालत में अवश्यक जांच करने के विकल्प प्रर्याप्त नहीं है और वर्तमान मे जिला सरकारी आकस्मिक अस्पतालों के हालात खस्ता हाल है आपतकालीन स्थिति को देखते हुए डाक्टर नहीं है न प्रयाप्त संख्या मे वेंटीलेटर है न इलाज के लिए दवाईया उपलब्ध है जहां छोटी बीमारियों से लड़ते-लड़ते मरीज को मृत्यु प्राप्त हो जाती है उसका कारण है हमारे अस्पतालों में काम करने वालों लोगों की कार्यशैली जिसमें सुधार के संग संसाधनों की भी अत्यंत आवश्यकता है।  

कुछ वरिष्ठ पत्रकार अपने आंकड़े बताते नजर आ रहे हैं, जर्मनी जैसे देश ने एक सप्ताह में पांच लाख लोगों की जांच की अमेरिका ने छ: लाख लोगों की जांच की भारत ने छः मार्च में ३४०० लोगों की जांच की सोलह मार्च को ईन्डियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च के बलराम भार्गव के अनुसार एक दिन में दस हजार लोगों की जांच की चौबिस मार्च को बोला बारह हजार लोगों की जांच की वरिष्ठ पत्रकार के अनुसार क्या हमारे देश के पत्रकारों के पूछना चाहिए की ये सूचना समय से क्यों नही बताया गया आज हमारे देश में सिर्फ बहुत मुश्किल से एक दिन में ८से१० हजार जांच करने में सफल हैं आने वाले दिनों में एक दिन मे १० से १५ हजार जांच कर सकते हैं जहां अमेरिका के सिद्धांतों के अनुसार ८ से १० लाख जांच प्रति दिन करगे तब कहीं जा कर पूरे अमेरिका में लाॅकडाउन हट सकता है इस बात पर वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष ने सत्य हिन्दी पोर्टल पर एक मशहूर लेखक ऐरोन केरोन के कह कुछ महत्वपूर्ण बिंदु पर अपने दृष्टिकोण से समझाने की कोशिश की है लेखक ने कहा अस्पताल में में कोरोनावायरस का ईलाज लिए सुविधाएं मौजूद हो जब आपके पास अगर अपातकालीन स्थिति में डाक्टर है किट्स हो संख्या मे वेंटीलेटर हो माक्स हो इस संबंधित दवाईयां हो ऐसी परिस्थिति आसानी से ईलाज हो सकता है इन बातों को समझाते हुए परिस्थिति पर वरिष्ठ पत्रकार आषुतोष ने कहा भारत को देखते हुए स्थिति अनुकूल नहीं दिखती है हमारे देश में इस संबंधित सुविधाएं उपलब्ध नहीं लग रही है लोगो को सुविधा नहीं मिल सकती है क्योकि चिकित्सा पर कभी गम्भीरता से विचार विमर्श नहीं किया आज आकस्मिक चिकित्सालय में कभी कार्यशैली सकारात्मक रुप से नहीं रही है ये सच कहां हमारे आकस्मिक चिकित्सालय ये सबसे बड़ा प्रशन है पूरी दुनिया इस महामारी के प्रकोप से जूझ रही है धन्य है हमारी मीडिया तो हिन्दू मुस्लिम में फंसी हुई है अमरिकन पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन एक कथाथित संदेश अक्सर हमें सुनने को मिलता है दुनिया को लम्बे समय तक मूर्ख नहीं बना सकते लेकिन धर्म एक ऐसा क्षेत्र है जहां लोगों को पीढ़ी दर पीढ़ी मूर्ख बनाया जा सकता है। 

हमारी मीडिया महान ठहरी लग गई इस मुहीम में उसने ये भी नहीं विचार किया देश इतनी बड़ी महामारी से जूझ रहा है क्या आज इस विशालकाय देश में बस्तियों में रहने वाले लोग जिनके पास न भोजन खरीदने के लिए रुपए तक नहीं तन ढ़ाकने के लिए वस्त्र नहीं ४००० रुपये कमाने वाले मजदूर जिनकी दिहाड़ी बन्द है उन्हें लाॅकडाऊन के दिनों में सरकार कितना भी संभव प्रयत्न कर ले सब तक क्या 50 फिसिदि ज़रूरतमंदों तक भी सहायता नही पहुँचा सकती जो कि एक कटु सत्य है,बल्कि देश के सभी वर्ग के लोगो के अतुल सहयोग से अभी तक सुबह-शाम दोनों टाईम का खाना छोटी-छोटी एनजीओ, सोसायटी, समाजिक संगठनो ने,क्षेत्र के बड़े व्यापारियों ने सहायता प्रदान किया, सबसे बड़ी खास बात दिखाई दी इन दिनों हिन्दू भाई मूस्लिम सिख भाइयों ने दिन रात मजदूरों रिक्शा चालकों को स्वंम उनके स्थान तक भोजन पहुंचाया और अच्छी समझ बूझ रखने वाले मजोले पेपरों के पत्रकारों साथियों ने व हमारे प्रशासनिक पुलिस कर्मियों ने भी लोगों को उनके स्थान तक भोजन पहुचाने सराहनीय कार्य उन बस्तियों में जाकर किया जितनी प्रशंसा करनी चाहिए कम है आज फिर सिद्ध हुआ एक आम इंसान दूसरे इंसान के लिए कंधे से कंधा लगाकर मदद करने को खड़े है धन्य है हमारी महान नेशनल मीडिया महान एंकर को ये नहीं दिखता उनको सिर्फ हिन्दू मुस्लिम में जो आनंद मिलता किसी और विषय में आनंद नहीं मिलता है एक अद्भुत दृश्य लाॅकडाउन समय देखने को मिला बुलन्दशहर के आनंद विहार मे कैसर पीड़ित व्यक्ति की मौत होजाने पर हिन्दू भाई के परिवार के साथ मूस्लिम भाईयों ने राम नाम सत्य का उपचारण करते हुए उस मृतक शरीर को श्मशान घाट तक ले गये आज फिर एकता की जीत हुई मीडिया कब तक लोगों के हृदय में नकारात्मक सोच को प्रज्वालित करती रहेगी।

क्या हम ऐसे बनगे विश्व गुरु

बीते दिनों दिल्ली से अपने घरों को लौटते लोगों की भायनक स्थिति देखने को मिली ३०००से ४००० कमाने वाले मजदूर जिनके हाथों में आधा दर्जन केले एक बिसलेरी की पानी की बोतल और अपने परिवार को लेकर अपने घर जा रहे थे बरेली के मजदूरों को केमिकल से नहलाया गया ऐसे संगठित मजदूरों को मदद देगी सरकार ऐसे करेगी  ऐसे बनगे आप विश्व गुरु हजारों की संख्या में लोग आधा दर्जन केले एक पारले जी के बिस्कुट के साथ अपने अपने परिवार के साथ दिल्ली से निकल पड़े बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हजारों की संख्या में कोई मजूदर, रिक्शावाला,ठेले वाले, सब्जी बेचने वाले जिनके पास अपने गांव जाने के लिए जेब में पैसे नहीं और निकल पड़े अपने अपने घरों की ओर भूखे प्यासी औरतें छोटे-छोटे बच्चे कोई अपने बच्चों को कन्धे पर उठाते एक दृश्य समाने आया जिसमे उसकी औरत की तबियत खराब होने के कारण एक नौजवान ने अपनी पत्नी को कंधे पर टांगें चला आ रहा है महान भावी व्यक्ति बड़ी निर्मलता से कह देते हमें माफ कर दे।

क्या हम ऐसे बनेंगे विश्व गुरु

बीते दिनों जो आंकड़े दिल्ली से अपने अपने घरो की ओर चले व्यक्ति वह दृश्य १९४७ के वक्त की तरह कुछ इस तरह नजर आई प्रदशो की सीमांए बार्डर के रुप में प्रतीत हुई ७२ साल के बाद कुछ नजारा दिखाई दिया रणवीर ३२ वर्ष चलते हुए दिल्ली से मुरैना की तरफ से आगरा में उसकी मौत हो गई सिकंदरा के पास शव मिला विनोद तिवारी दिल्ली से सिधार्थ नगर गांव मोपेड पर सवार हुआ अपनी पत्नी और दो बच्चों के लेकर चला उसकी तबियत बिगड़ गई और उसने मोपेड अलग खड़ी की और तत्काल उसकी मौत हो गई बीच रोड पर उसकी पत्नी और बच्चे बिलख बिलख कर रो रहे थे ऐसे बनेंगे *आप विश्व गुरु गुड़गांव से इटावा की दिशा पर आटो में बारह लोग सवार हुए और आगे चलकर आटो का टायर फट गया ग्यारह लोग जख्मी हुए और एक व्यक्ति की तत्काल मौत हो गई महेंद्र दत्त दो साल पहले दिल्ली में आया था और कसम खा रहा था दिल्ली दुबारा नहीं आऊंगा आठ हजार वेतन पर काम करता था विजय कुमार २६ वर्ष कानपुर की दिशा में निकल पड़ा २००० से ३००० वेतन कमाने वाला परिवार के आठ सदस्यों को लेकर निकल पड़ा पैदल अपने घर की ओर विजय पाल ४७ साल वर्ष दिल्ली में ३००० नौकरी करता था साथ पीलीभीत का रहने वाला गेरेटर नोयेडा से तीन सदस्यों को लेकर पैदल चल पड़ा ब्रजमोहन सिंह ३५ वर्ष कारपेंटर का काम करने वाले ९००० कमाने वाला राजकुमारी ५७ साल झांसी की रहने वाली ३००० दिहाड़ी कामने वाली मजदूर पैदल चल पड़ी अमित कुमार २९ वर्ष १५००० कमाने वाला ट्रक ड्राइवर,बीते चार रोज से जिसने कुछ नहीं खाया स्थिति बहुत ही भयावह हो गई थी दिल्ली के कोशाम्बी सायेरा बानो चल पड़ी अपने घर के ओर क्या सरकार ने उन लोगों की सुध लिया वो लोग अपने घर पहुंच पाये या नहीं कितने लोगों की बीच में मौत हुई।  

 क्या हम ऐसे बनेंगे विश्व गुरु  

मांफी मांग लेने से समस्या नहीं खत्म होती उन समस्याओं से निवारण करने से लोगों की समस्याओं का हल नही निकलता है आज जो भी जैसे वेतन पा रहा हो उस हिसाब से उसने अपने करीबी लोगों से अपने बजट अनुसार कर्ज ले रखखा है कोई पांच हजार कोई दस हजार घर पर बैठे हैं बच्चों को खाना खिलाना है अपने वेतन के हिसाब से कर्ज ले रखखा है जब भी लाॅकडाउन खुलेगा अदाईगी चालू हो जायेगी सोचे अगर आम लोग रोडो पर भोजन न बांट रहे होते क्या भयंनक स्थिति होती आज एक इंसान दूसरे इंसान की आगे बढ़ कर मदद की है आज भारतवासियों ने ये संदेश दिया हम हर परिस्थिति में एक जुटता से लड़ने के लिए तैयार हैं कोरोनावायरस हमारे देश से हार गया है क्योंकी यहां एकता है जो सरकार अपने प्रवासियों व मजदुरो का दर्द नहीं दिख रहा है डाक्टरों का दर्द नहीं दिख रहा जहां नर्से धरने पर बैठी है न छोटे  दुकानदारों का दर्द नहीं समझ पा रहे हैं ये सवाल खुद मीडिया को सरकारों से करना चाहिए विडम्बन है क्या ये मीडिया को पुछना नहीं चाहिए सरकार से कौन पुछेगा गरीब किसानों मजदूरों का दर्द को वर्तमान समय में ऐसे बनेंगे आप विश्व गुरु  मैं उस गाने को पुनः दोहरा लेता हूं।

जुबां पे दर्द भरी दास्तां चली आई बहार आने से पहले खिजां चली आई



 

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