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112 साल में ट्राम से मेट्रो तक पहुंचा कानपुर ...

बेहद रोचक है अब तक का सफर

कानपुर कनकैया, ऊपर चलै ट्रेन का पहिया, नीचे बहती गंगा मैया’ शायद ही किसी पुराने कनपुरिये को न पता हो, लेकिन ट्रेन के साथ-साथ कभी यहां ट्राम भी चला करती थीं, जो सार्वजनिक परिवहन का पहला आधुनिक माध्यम थीं। टमटम (तांगे), साइकिल से चलने वाले अधिकतर कनपुरियों को ट्राम के रूप में सौगात सन् 1907 में मिली और 26 साल लगातार वे इस पर सफर करते रहे।

आजादी से 40 साल पहले ही यहां इंटीग्रेटेड ट्रांसपोर्ट सिस्टम लागू करके अंग्रेजों ने भी यह स्पष्ट कर दिया था कि यह शहर हमेशा विकास चाहता है। इसी कड़ी में अब मेट्रो का काम शुरू हुआ है। दो-ढाई साल में मेट्रो चलने लगेगी और इसी के साथ कानपुर भी देश के उन शहरों में शुमार हो जाएगा, जो वास्तव में मेट्रो सिटी माने जाते हैं।

इन रूटों से गुजरती थी ट्राम, घाटा होने पर बंद की गई ट्राम

जीटी रोड स्थित पुराना रेलवे स्टेशन (जीटी रोड) से सरसैया घाट तक डबल ट्रैक पर ट्राम चलाई जाती थी। इसका रूट पुराने स्टेशन से शुरू होकर घंटाघर, हालसी रोड, बादशाही नाका, नई सड़क, हॉस्पिटल रोड, कोतवाली, बड़ा चौराहा और सरसैया घाट पर खत्म होता था। नई सड़क के आगे बीपी श्रीवास्तव मार्केट (मुर्गा मार्केट) में ट्राम के रखरखाव के लिए यार्ड बना था। अब ट्राम के इतिहास की यह इकलौती साक्षी है। उस समय इस जगह को कारशेड चौराहा कहा जाता था, जो बोलचाल में बिगड़ते-बिगड़ते कारसेट चौराहा हो गया। नई सड़क पर रोड़ के दोनों ओर ट्राम का ट्रैक था। सन् 1933 में ट्राम को बंद कर दिया गया। कुल 26 सालों के सफर में ट्राम लोगों के लिए बहुत मददगार साबित हुई। शहर की सड़कों पर ट्रैफिक बढ़ने और इसे चलाने में हो रहा घाटा, इसके बंद होने की वजह बना।  

गंगा किनारे तक चलती थी ट्राम, डिब्बों की खुली छत

ट्राम सरसैया घाट के किनारे तक जाती थी। ऐसा इसलिए किया गया था कि बड़ी संख्या में श्रद्धालु रोज गंगा स्नान के लिए जाते थे।  इसके डिब्बों की विशेषता थी खुली छत। इसके डिब्बे सिंगल डेक थे। ऊपर बैठने की व्यवस्था थी, लेकिन उस पर छत नहीं थी। ऊपर बैठे लोग खुली हवा का आनंद लेते रहते थे। 

1855 में डाली गई थीं रेल लाइनें, बाहर के लिए सन् 1860 में चली पहली ट्रेन

सन् 1855 में रेलवे ने कानपुर से इलाहाबाद तक रेल लाइनें डालने का काम शुरू किया था। सन् 1857 की क्रांति में क्रांतिवीरों ने अंग्रेजों से बदला लेने के लिए उन्हें नुकसान पहुंचाया। पटरियां उखाड़ दी गईं और पुल तोड़ दिए गए। यहां तक कि उस समय रेलवे में काम करने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों को मौत के घाट उतार दिया गया था। ईस्ट इंडिया कंपनी ने दोबारा पटरियां बिछवाईं। पुराना कानपुर रेलवे स्टेशन से 1860 में मुंबई के लिए, 1875 में लखनऊ के लिए और 1886 में झांसी के लिए पहली ट्रेन चली। तब तक सेंट्रल स्टेशन बन चुका था, जिसे छोटा स्टेशन कहा जाता था। सन् 1930 में पुराने रेलवे स्टेशन को बंद कर दिया गया और इसकी जगह सेंट्रल स्टेशन ने ले ली।

सन् 1859 को कानपुर में पहली बार आई थी मालगाड़ी

                                                            तीन मार्च 1859 को इलाहाबाद से पुराना रेलवे स्टेशन पर 10 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से मालगाड़ी आई। कानपुर में मालगाड़ी की यह पहली आमद थी।

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