भाजपा को टक्कर देने के लिए जातिगत समीकरण साधा ...
भाजपा को टक्कर देने के लिए जातिगत समीकरण साधा
कानपुर की आर्य नगर विधानसभा सीट से कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल के भाई प्रमोद जायसवाल, घाटमपुर में सर्वे के बाद मजबूत दलित चेहरा और जमीनी नेता राजनारायण कुरील, सीसामऊ से मुस्लिम प्रत्याशी हाजी सुहैल, महाराजपुर विधानसभा से युवा चेहरा यूथ कांग्रेस यूपी उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष कनिष्क पांडेय, बिल्हौर से ऊषा रानी कोरी और सिकंदरा से नरेश कटियार और दो टिकट रिपीट करते हुए कैंट से मौजूदा समय में कांग्रेस के विधायक सुहैल अंसारी और किदवई नगर से पूर्व विधायक अजय कूपर की टिकट लगभग तय है। प्रदेश स्तर से इन सभी का नाम फाइनल करके केंद्रीय चुनाव कमेटी को भेज दिया गया है।
कानपुर में कांग्रेस के पांच प्रत्याशी घोषित
यूपी कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव 2022 के लिए 125 प्रत्याशियों की पहली लिस्ट जारी कर दी है। 125 प्रत्याशियों की पहली सूची में 50 उम्मीदवार महिलाएं हैं। कानपुर से पांच प्रत्याशी घोषित किए गए हैं। कानपुर में कुल 10 विधानसभा आती हैं। इसमें कांग्रेस प्रदेश इकाई द्वारा अभी 5 सीटों पर घोषणा किया जाना बाकी है। किदवईनगर विधानसभा से तीन बार विधायक रहे अजय कपूर पर कांग्रेस ने फिर भरोसा जताते हुए उम्मीदवार बनाया है। जबकि कैंट से वर्तमान विधायक सोहेल अख्तर अंसारी को प्रत्याशी बनाया गया है। आर्यनगर से प्रमोद जायसवाल का टिकट फाइनल हुआ है। सुरक्षित सीट से उषा रानी कोरी को उम्मीदवार बनाया गया है। महाराजपुर से युवक कांग्रेस के कनिष्क पांडे को प्रत्याशी बनाया गया है।
वर्तमान में कानपुर से कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेता अजय कपूर 7वीं बार विधानसभा का चुनाव लड़ने जा रहे हैं। पूर्व में 2002 से 2017 तक तीन बार लगातार विधायक रहे हैं। वर्ष 2002 में उन्होंने भाजपा के राज्य मंत्री बालचंद्र मिश्र को हरा कर पहली बार विधानसभा में कदम रखा था। इससे पहले वह दो बार विधानसभा का चुनाव हार भी चुके हैं। अजय कपूर ने अपनी राजनीतिक जीवन की शुरुआत नगर निगम में पार्षद के तौर पर की थी। 2007 में भाजपा के हनुमान मिश्र को हराया था। वर्ष 2012 में भाजपा प्रत्याशी विवेकशील शुक्ला को चुनाव में परास्त किया था। 2017 में भाजपा के महेश त्रिवेदी ने अजय को पटकनी दी थी। अब 2022 में एक बार फिर से उनका मुकाबला भाजपा से होना तय माना जा रहा है। अजय कपूर के दम पर यहां कांग्रेस मुख्य लड़ाई में रहती है।
कांग्रेस के वर्तमान विधायक सोहेल अख्तर अंसारी एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस- सपा गठबंधन से सोहेल ने पहला विधानसभा चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी।0 कैंट विधानसभा में मुस्लिम वोटर ज्यादा होने की वजह से सीधा फायदा सोहेल अंसारी को मिला था। इस बार चौतरफा मुकाबला होने से उनकी राह आसान नहीं होगी। इस बार सपा और कांग्रेस अलग-अलग प्रत्याशी उतारेंगे। वहीं बसपा भी अपना प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारेंगी। यहां से एआईआईएम के असदुद्दीन ओवैसी भी अपना प्रत्याशी उतारेंगे। मुस्लिम वोटों के बंटवारे पर भाजपा को सीधा फायदा मिल सकता है। वर्ष 2012 में मुस्लिम वोटों के बंटबारे से भाजपा के रघुनंदन भदोरिया बहुत कम वोटों के अंतर से विधायक बने थे।
युवा चेहरे के तौर पर युवक कांग्रेस पूर्वी के प्रदेश अध्यक्ष कनिष्क पांडे को प्रत्याशी बनाया है। कनिष्क लंबे समय से कांग्रेस में सक्रिय हैं। प्रियंका गांधी के बेहद करीबी भी माने जाते हैं। लगभग डेढ़ साल पहले युवक कांग्रेस की कमान सौंपी गई थी। कनिष्य की सक्रियता को देखते हुए महाराजपुर जैसी महत्वपूर्ण और भाजपा का गढ़ माने जाने वाले सीट से प्रत्याशी बनाया गया है। महाराजपुर में भाजपा के कद्दावर नेता और कैबिनेट मंत्री सतीश महाना चुनाव मैदान में हैं। सतीश महाना 7 बार से लगातार विधायक रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस की राह बहुत आसान नहीं होगी।
कांग्रेस के शीर्ष नेता और कैबिनेट मंत्री रहे श्री प्रकाश जायसवाल के छोटे भाई प्रमोद जायसवाल आर्यनगर विधानसभा से अपनी किस्मत आजमाने जा रहे हैं। साल 2017 में सिंबल मिलने के बाद भी कांग्रेस से इनको टिकट नहीं मिल पाया था। उसकी वजह थी कि सपा और कांग्रेस में हुए समझौते के तहत यह सीट सपा के खाते में चली गई। जिसके बाद प्रमोद जायसवाल को अपना नाम वापस लेना पड़ा। श्रीप्रकाश जायसवाल के छोटे भाई होने के नाते इससे पहले खुलकर राजनीति नहीं कर पाए। दोनों भाइयों में टकराव चर्चा का विषय बना रहा। श्रीप्रकाश जायसवाल के लगभग राजनीतिक संन्यास लेने के बाद प्रमोद जायसवाल को पहली बार कांग्रेस से टिकट मिला है। यहां पर त्रिकोणीय संघर्ष तय माना जा रहा है। आर्यनगर विधानसभा भाजपा का हमेशा गढ़ रह है। हालांकि, पिछली बार यहां से सपा के अमिताभ बाजपेई ने जीत दर्ज की थी।
कानपुर ग्रामीण की सुरक्षित विधानसभा सीट बिल्हौर से ऊषारानी कोरी को कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाया है। पांच घोषित उम्मीदवारों में एकमात्र महिला उषा रानी का कांग्रेस में राजनीतिक सफर लंबा रहा है। वह पूर्व में जिला पंचायत का चुनाव लड़ चुकी हैं। कानपुर ग्रामीण की अध्यक्ष भी रही हैं। पिछले लंबे समय से बिल्हौर विधानसभा में सक्रिय हैं। पार्टी ने यहां अपने निष्ठावान नेता को चुनाव मैदान में उतारा है, लेकिन बिल्हौर विधानसभा में 89 के बाद कभी भी कांग्रेसी लड़ाई में नहीं रही है। ऐसे में उषा रानी कोरी की राह बहुत आसान नहीं होगी। बिल्हौर विधानसभा में लगातार सपा और बसपा का विधायक जीतता रहा है। पिछली बार जरूर बसपा से भाजपा में आए भगवती सागर यहां से विधायक बने थे। बदले हालातों में यदि बात बिल्हौर विधानसभा की करें तो यहां से फिर से सपा, बसपा और भाजपा में संघर्ष होता दिख रहा है।
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