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कड़ाके की ठंड में बढ़ा प्रदूषण, पांच गुना मौतें ...

औसतन दो की मौत

कानपुर: प्रदूषण ने इस जाड़े में मौतों की संख्या करीब पांच गुना बढ़ा दी है। जाड़े में बढ़ने वाली बीमारियों के लक्षण अचानक गंभीर होने लगे और रोगियों की मौत एक झटके में हो गई। ब्लडप्रेशर हाई होने से 50 फीसदी रोगियों की ब्रेन अटैक से मौके पर ही मौत हो गई और जो 50 फीसदी अस्पताल गए उनकी मृत्यु दर 30 फीसदी से अधिक रही।

इसी तरह बीपी यकायक बढ़ने से पहले की तुलना में लोगों को अधिक हार्ट अटैक पड़ा है। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषण से फेफड़ों की क्षमता 15 फीसदी घट गई है। शरीर में आक्सीजन लेवल कम होने, प्रतिरोधक क्षमता घटने और फ्री रेडिक ल्स शरीर में बढ़ने से रोगियों की मौत जल्दी हो जा रही है।

मेडिकल कॉलेज के डॉ. मुरारीलाल चेस्ट हॉस्पिटल ने आईआईटी के साथ मिलकर 10 साल पहले शोध किया था। इसमें प्रदूषण के कारण लोगों के फेफड़ों की क्षमता 10 फीसदी कम पाई गई। ताजा अपडेट के मुताबिक अब यह 15 फीसदी तक पहुंच गई है। शोध के अगुवा प्रोफेसर डॉ. एसके कटियार का कहना है कि प्रदूषण के महीन तत्वों के खून में मिलने की वजह से फ्री रेडिकल्स बढ़े हैं। इससे दूसरे अंदरूनी अंगों की क्षमता घट जाती है। इसका एक लक्षण सांस फूलना है। अधिकांश रोगियों की सांस जल्दी फूलने लग रही। सामान्य बीमारी घातक हो जा रही है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होने से मौत जल्दी और एक झटके में हो जाती है।

पहले झटके में मरने वालों की संख्या बढ़ी

हैलट, उर्सला और निजी अस्पतालों के आंकड़ों के मुताबिक बीते दिसंबर और जनवरी के पहले सप्ताह में प्रतिदिन औसतन दो की मौत का आंकड़ा रहा है। इस साल यह आंकड़ा पांच गुना अधिक हो गया है। अस्पतालों के रिकार्ड के मुताबिक हार्ट अटैक के 30 फीसदी रोगी ऐसे रहे जो पहले अटैक में ही मर गए। ब्रेन अटैक के 40 फीसदी रोगी ऐसे रहे जिन्हें पहली बार दिक्कत हुई और मौत हो गई। इसके पहले पहले हार्ट अटैक में मरने वाले 10 और ब्रेन अटैक के 15 फीसदी रोगी रहे हैं। इसके साथ ही ग्रामीण अंचलों से आने वाले रोगियों का औसत बढ़ा है।


सबसे खराब स्थिति में रहे सीओपीडी रोगी

इस साल सांस की एलर्जी के रोग सीओपीडी और अस्थमा के रोगी सबसे बुरी हालत में रहे। उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक शहर के अस्पताल में सात रोगी औसत 10 दिसंबर से 10 जनवरी के बीच मरे हैं। इनकी सांस न समाई और मौत हो गई। रोगी कानपुर नगर, देहात, फतेहपुर, उन्नाव, औरैया, इटावा आदि जिलों के रहे हैं।
 
ब्रेन को सबसे अधिक आक्सीजन और ब्लड सर्कुलेशन की जरूरत होती है। अगर आक्सीजन और सर्कुलेशन पांच मिनट न मिला तो स्थायी रूप से ब्रेन डेड हो जाता है। प्रदूषण का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- डॉ. कृष्ण कुमार, क्लीनिकल प्रोफेसर इमरजेंसी मेडिसिन, न्यूयॉर्क कॉलेज ऑफ आस्टियोपैथिक मेडिसिन अमेरिका (आजकल शहर में)
 
प्रदूषण से फेफड़ों की स्थिति गंभीर हो रही है। इसका प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ रहा है। सांस फूलने की शिकायत लेकर आने वाले बालरोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। सामान्य बच्चों की खेलने में जल्दी सांस फूलने लगती। सामान्य रोगों से रोगियों की स्थिति गंभीर हो जाती है।
- डॉ. राज तिलक, वरिष्ठ बाल सांस रोग विशेषज्ञ

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