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नही रुक रहा पत्रकारों का उत्पीरण, आदेशों की होती अनसुनी ...

चार शब्दो की कहानी....

कानपुर:- आज कल चार शब्द जो हर ज़ुबान पर लगभग रटे है वह है कोरोना, लॉक डाउन, सोशल डिस्टनसिंग और कोरोना योद्धा वैसे तो दो चार और भी शब्द है पर वह मर्यादित एवं सभ्यता के दायरे से परे है। तो हम बात कर रहे थे शब्दो की, चार शब्दो की कोरोना वायरस जिसने सम्पूर्ण विश्व में उत्पात मचा रखा है, जिस का समाधान एवं वर्तमान समय में एक मात्र उपचार जो सम्पूर्ण विश्व जगत के पास है वह है दूसरा शब्द लॉक डाउन जो कि लगभग सारे विश्व (प्रभावित देशों) में प्रभावी रूप से लागू है, जिस के उपरांत आता है तीसरा शब्द सोशल डिस्टनसिंग अथार्त सामाजिक निजी दूरी जो कि कोविड 19 वैश्विक महामारी की रोकथाम के लिए सबसे महत्वपूर्ण है क्यो की अभी तक कोरोना के उपचार हेतु कोई भी औषधि अथवा वैक्सीन बाजार में उपलब्ध नही है न ही अभी तक पूर्ण रूप से कोई औपचारिक घोषणा किसी भी देश एवं चिकित्सा जगत से जुड़ी कंपनी एवं संस्था द्वारा की गई है कि उनके द्वारा सफ़ल एवं अचूक रामबाण वैक्सीन/औषधि की खोज की जा चुकी है। अब बारी आती है चौथे परन्तु सबसे महत्तवपूर्ण शब्द कोरोनावीर/योद्धा की जिसमें कई श्रेणीयां है जैसे डॉक्टर, सफ़ाईकर्मी, समाजसेवी,पुलिस, पत्रकार एवं कुछ और अन्य भी। 

कोरोना योद्धा:-डॉक्टर्स

सर्वप्रथम बात करते है डॉक्टर्स की जिन की धरती के भगवान की उपाधि से सुसज्जित एवं संबोधित किया जाता है जो कि वर्तमान समय की विकट परिस्तिथियों में सौ प्रतिशत सत्य है।

कोरोना योद्धा:- सफ़ाई कर्मी

आज के समय में सरकारी तंत्र के इस विभाग की जितनी प्रशंसा की जाए कम है, दिन रात यह कोरोना योद्धा अपना योगदान समाज एवं राष्ट्रहित में दे रहे है, जिस के लिए इनको शत शत नमन।

कोरोना योद्धा:-समाजसेवी

आज हमारे आप के बीच से बिना किसी भेदभाव गरीबो असहाय वर्ग के लिए मसीहा बन ईश्वर के यह सब दूत रातों दिन लोगो की हर प्रकार से सहायता करते नज़र आ जाते है, जिस के लिए इनकी जितनी प्रशंसा के साथ दुआएं दी जाए कम है।

कोरोना योद्धा:-पुलिस/प्रशासन

पुलिस/प्रशासन वैसे तो समाज में शासन अधीन इस विभाग की छवि का क्या महिमा मंडल किया जाए, परंतु वर्तमान समय में इस विभाग की छवि में प्रभावी सुधार के संग प्रशंसा भी सभी और कि जा रही है इन के अथक परिश्रम एवं प्रयासों को देखते और सुनते हुए, परंतु वह मुहावरा तो सुना ही होगा पाँचों उंगलियां एक बराबर नही होती।

कोरोना योद्धा:- पत्रकार

समाज का यह वर्ग देश का चौथा स्तम्भ जी हां हम बात कर रहे है पत्रकारों की उन कोरोना योद्धाओं की जो इस वैश्विक महामारी कोविड 19 की आपदा के बीच बिना किसी भेदभाव, सरकारी एवं संस्थागत सहायता के बिना चिलचिलाती धूप हो या बिन मौसम की बरसात राष्ट्रहित जनहित मानवता के प्रति अपना कर्तव्य पूर्ण निष्ठा से निभा रहे है साथ ही कोपभजन का शिकार भी हो रहे है, चाहे वह महामारी के संक्रमण का हो जनता का आक्रोश हो यह पुलिस/प्रशासन की मेहरबानी किसी भी रूप में।
बाकी समस्त योद्धा के योगदान को नज़रंदाज़ नही करते हुए एक कटु सत्य सबका मोल निर्धारित है मात्र एक को छोड़ कर पत्रकार जिस की लेखनी अनमोल है, जिसके योगदान का नही निर्धारित कोई मोल है के विपरीत सदैव होता आया है जिसका उत्पीरण।

बात करते है अब मुद्दे की

जहां एक और केंद्र से लेकर राज्य सरकार प्रशासन में आसीन आला अधिकार इस वैश्विक महामारी कोविड 19 में मीडिया जगत पत्रकार बंधुओं की प्रशंसा करते नही थक रहे है, जिन के द्वारा प्रत्येक जिले को निर्देशित किया गया है कि किसी भी प्रकार से इन कोरोना योद्धाओं को कोई भी कष्ट एवं असुविधा पुलिस विभाग की ओर से प्रमुखता से न हों परंतु न जाने थाना स्तर पर कुर्सी तोड़ रहे कुछ पुलिसकर्मियों एवं अधिकारियों द्वारा सभी आदेशों की अनदेखी अनसुनी लगातार बारंबार की जाती रही है और कि जा रही है जिस का एक चिर्थाथ उदहारण बीते दिनों थाना कलेक्टरगंज अंतर्गत नयागंज चौकी प्रभारी द्वारा किया गया कृत है। 

घटना:- दैनिक उपयोग की वस्तुओं साग सब्ज़ियों एवं पत्नी की दवा लेने जा रहे पत्रकार का नागेश्वर मंदिर पर कलक्टरगंज पुलिस द्वारा जबरन दो पहिया वाहन रोकर कर दिया 1500 रुपए का ई चालान, अपना परिचय पत्रकार के बार बार संज्ञान में देने के पश्चात भी नयागंज चौकी निरिक्षक महोदय प्रधुम्न के खासमखास होनार सिपाही लवकेश द्वारा आननफानन में झोंका गया ई चालान, मौके पर पत्रकार की बात अनसुनी कर चौकी प्रभारी ने भी दिखाया अड़यल टाल मटोल रवैया। यह एक मात्र घटना या निर्भीक शब्दों में पत्रकारों के प्रति पुलिस की हीन भावना से की गई प्रताड़ित करने वाली कार्यवाही नही है, सम्पूर्ण लॉक डाउन में इस प्रकार की विभिन्न पत्रकार विरोधी गतिविधियों की सूचनाएं प्राप्त होती रही है जिस की एक बानगी शहर दायर समाचार पत्र के पत्रकार के ई चालन का मामला उजागर हो आला अधिकारियों के संज्ञान में पहुँचा है। अब देखने वाली बात या होगी कि क्या होगी कार्यवाही या होगी सिर्फ खानापूर्ति, अपने हितों अनुसार क्या यू ही किया जाता रहेगा पुलिस/ प्रशासन द्वारा पत्रकारों का उत्पीरण। यह फ़िर पत्रकारों द्वारा स्वयं अपने आत्मसमान एवं पत्रकारिता की प्रतिष्ठा के प्रति उठाया जाएगा कोई ठोस कदम और एहसास कराया जाएगा पुलिस/प्रशासन में आसीन ऐसी कुंठित मानसिकता के अधिकारियों एवं कर्मियों को कि एक दो रुपए की कलम से लिखने वाला पत्रकार जब अपनी पर आ जाता है तो दो लाख कमाने वाले व्यक्ति की कुर्सी के पाएं में भी दरार लाने की क्षमता रखता है।

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