दिल्ली की तर्ज पर कानपुर में सीएए के विरोध में बुर्कानशीन भी ...
मोहानी की बहू भी आगे आईं
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और एनआरसी के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग में लगातार चल रहे महिलाओं के धरना-प्रदर्शन का असर कानपुर में भी पड़ा है। चमनगंज के मोहम्मद अली पार्क में पिछले चार दिनों से लगातार चल रहे धरना-प्रदर्शन में बड़ी संख्या में बुर्कानशीन महिलाएं और छात्राएं भी शामिल हो रही हैं।
लोकतंत्र बचाओ आंदोलन के बैनर तले शुरू हुए इस आंदोलन में मुस्लिमों के साथ-साथ तमाम हिंदू भी शामिल हो रहे हैं। मोहम्मद अली पार्क में चल रहे धरना-प्रदर्शन में शामिल होने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। चमनगंज जैसे इलाके में बुर्कानशीन महिलाओं के धरना-प्रदर्शन में शामिल होने से लोगों को अचंभा हो रहा है।
शुक्रवार शाम चार बजे से धरना शुरू हुआ। बुर्कानशीन महिलाएं सीएए-एनआरसी के विरोध वाली तख्तियां लिए नजर आईं। खास बात यह है कि घर के कामकाज निपटाकर यहां पहुंची महिलाएं माइक पर इस कानून के विरोध में बोलती दिखीं। इंकलाब जिंदाबाद के नारे के साथ शुरू होने वाले प्रदर्शन में आजादी की नज्में, देशभक्ति के गीत गाए जाते हैं। आखिरी में राष्ट्रगान होता है।
देश भर में नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी और एनपीआर को लेकर जब आंदोलन शुरु हुआ तो सबकी निगाहें देश के सबसे बड़े एवं हिंदी भाषी राज्य उत्तर प्रदेश पर टिकी थी। क्योंकि यहां की राजनीति एवं दूसरी परिस्थितियां देश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जब यूपी वालों ने आंदोलन में भागीदारी करनी चाही तो प्रदेश में हिंसा भड़क उठी। परिणाम स्वरुप कई लोगों की जानें गईं, कई लोग घायल हुए, कई लोगों की संपत्तियों को पुलिस द्वारा नुकसान पहुंचाया गया, सैकड़ों की संख्या में गिरफ्तारियां हुईं और यूपी पुलिस एवं राज्य सरकार पर लोगों की आवाज़ दबाने का आरोप लगा। जिसके बाद सवाल उठने लगे कि क्या अब देश का इतना बड़ा आंदोलन उत्तर प्रदेश में आकर दम तोड़ देगा? क्या नागरिकता संशोधन कानून को लेकर उत्तर प्रदेश की जनता खामोश बैठी रहेगी? क्या अब यूपी में किसी में इतना साहस नहीं बचा कि इस आंदोलन में प्रदेश को भागीदार बनाये?
परंतु कानपुर की ज़िंदादिल आधी आबादी महिलाओं ने यह साबित कर दिया कि अब यह शांतिपूर्ण विरोध रुकने वाला नही। मुस्लिम महिलाओं द्वारा किसी भी सामाजिक मुद्दे पर अपना पक्ष बहुत ही कम अवसरों पर रखते देखा गया है परंतु सीएए के विरोध में देश भर चाहे दिल्ली हो यह हैदराबाद लखनऊ हो या कानपुर महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर संघर्ष कर रही है और करती रहेगी इस काले कानून की वापसी तक।
कार्यक्रम में मुस्लिम बुद्धिजीवी मोहम्मद सुलेमान, कुलदीप सक्सेना, सैयद अबुल बरकात नजमी रोजाना आते हैं। शुक्रवार को मुजीब इकराम, मुफ्ती आसिफ अनजार, विष्णु शुक्ला, आलोक अग्निहोत्री, प्रदीप यादव, सोनेलाल, डॉ. नफीस आदि ने विचार रखे। इनामुर्रहमान नश्तर, शेरू, मोहम्मद शारिक, अब्दुल्ला मलिक मौजूद रहे। शुक्रवार को स्वतंत्रता सेनानी मौलाना हसरत मोहानी की बहू सबीहा मोहानी भी इस कानून पर मुखर हुईं। शारिक नक्शबंदी ने भी हिंदू-मुस्लिम एकता और संविधान पर लोगों को समझाया।
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