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यूपी में पहली बार एनकाउंटर में इतनी संख्या में हुई शहादत ...

कानपुर में 8 पुलिसकर्मियों की शहादत के जिम्मेदार विकास दुबे ने 19 साल पहले किया था ऐसा ही दुस्साहस.8 पुलिसवालों की हत्या करने वाले विकास दुबे ने 17 साल की उम्र में की थी पहली हत्या, एक पैर में डली है रॉड, कानपुर देहात के चौबेपुर थाना क्षेत्र के विकरू गांव का निवासी विकास दुबे के बारे में बताया जाता है इसने कई युवाओं की फौज तैयार कर रखी है।IG ने विकास दुबे का सुराग देने वाले को 50 हजार के ईनाम का किया ऐलान।

कानपुर में दबिश देने गई पुलिस टीम पर हमला कर 8 पुलिसकर्मियों को शहीद करने वाले हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे का जघन्य आपराधिक इतिहास रहा है। बचपन से ही वह अपराध की दुनिया में अपना नाम बनाना चाहता था। पहले उसने गैंग बनाया और लूट, डकैती, हत्याएं करने लगा। 19 साल पहले उसने थाने में घुसकर एक दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री की हत्या की और इसके बाद उसने राजनीति में एंट्री लेने की कोशिश की थी। लेकिन, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। विकास कई बार गिरफ्तार हुआ, एक बार तो लखनऊ में एसटीएफ ने उसे दबोचा था। कानपुर में एक रिटायर्ड प्रिंसिपल सिद्धेश्वर पांडेय हत्याकांड में इसको उम्र कैद हुई थी।

एहसान के बदले तैयार करता था

युवाओं की फौजविकास हमेशा अपने साथ 20 से 25 लड़कों का जत्था लेकर चलता था। इसमें ज्यादातर गांव के युवक हुआ करते थे। जबकि कुछ खास बाहरी होते थे। पिछले 15 सालों से उसके घर में ही प्रधानी रही है तो गांव वालों की जरूरत के मुताबिक सबकी सरकारी योजनाओं से लेकर रुपए-पैसे तक कीमदद करता था। नए लड़कों को पहले शराब पिलानाऔर खाना खिलाना करता,फिर उन्हें महंगे कपड़े और मोबाइल वगैरह देता। जब लड़कों को उसकी लत लग जाती तो उन्हें अपने गिरोह में शामिल कर लेता था। गांव में उसकी किसी से दुश्मनी नहीं है न ही किसी को वह परेशान करता है। इसीलिए गांव वाले उसकेसपोर्ट में रहते हैं।

गांव में विकास के खिलाफ कोई बोलने को तैयार नहीं

गांव में लोग उसके खिलाफ बोलने से डरते हैं। विकास के घर से 100 मीटर दूर कुछ महिलाएं आपस में बात कर रही थीं। जैसे ही उनसे विकास के बारें में बात की तो उन्होंने बताया कि गांव में ठाकुर, ब्राह्मण, लोधी, सोनकर लोग रहते हैं। लेकिन, गांव में विकास ने किसी को परेशान नहीं किया। एक महिला राजमती बताती हैं कि विकास 6 दिन पहले ही गांव की एक शादी में शामिल होने आया था। जहां उसने 10 हजार रुपएव्यवहार में दिए थे। महिलाओं ने कहा- विकास हमारी मदद करता था।
रामकुमारी बताती हैं कि उसने ही मेरी वृद्धा पेंशन लगवाई। घर में शौचालय भी बनवाया है। जबकि इंदुमति कहती है कि घर के मर्दों को काम भी दिलवाता था। कुछ दुख दर्द लेकर पहुंच जाओ तो मदद भी करता था।विकास का गांव में इतना दबदबा है किगांव की महिलाएं उनके सामने घूंघट नहीं उठाती हैं।

कहलाता था शिवली का डॉन

यही नहीं पंचायत और निकाय चुनावों में इसने कई नेताओं के लिए काम किया और उसके संबंध प्रदेश की सभी प्रमुख पार्टियों से हो गए। 2001 में विकास दुबे ने बीजेपी सरकार में एक दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री संतोष शुक्ला को थाने के अंदर घुसकर गोलियों से भून डाला था। इस हाई-प्रोफाइल मर्डर के बाद शिवली के डॉन ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया और कुछ माह के बाद जमानत पर बाहर आ गया।

नगर पंचायत चुनाव जीता

इसके बाद इसने राजनेताओं के सरंक्षण से राजनीति में एंट्री की और नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीत गया था. जानकारी के अनुसार, इस समय विकास दुबे के खिलाफ 52 से ज्यादा मामले यूपी के कई जिलों में चल रहे हैं। पुलिस ने इसकी गिरफ्तारी पर 25 हजार का इनाम रखा हुआ था। हत्या व हत्या के प्रयास के मामले पर पुलिस इसकी तलाश कर रही थी।

17 साल की उम्र में की पहली हत्या, फिर बढ़ता गया अपराध का ग्राफ

सूत्र बताते हैं कि 1985 से 90 का दौर था, विकास दुबे जिसे इलाके में सब पंडित जी कहकर बुलाते हैं, तब17 साल का रहा होगा, उसने कानपुर-कन्नौज बॉर्डर पर पड़ने वाले गंगवापुर में पहली हत्या की थी। यह गांव विकास का ननिहाल है। इस हत्याकांड में उसे कोई सजा नहीं हुई,जिसके बाद वह बेकाबू हो गया। उसके बाद वह छोटी मोटी चोरियां और लूटपाट करने लगा। 1991 में उसने अपने ही गांव के झुन्ना बाबा की हत्या कर दी। इस हत्या का मकसद था बाबा की जमीन कब्जा करना। पुराने समय के लोग जमीन में जेवर वगैरह रखते थे। विकास को यह बात मालूम थी। जिसके चलते उनकी हत्या कर उनकी जमीन पर कब्जा कर लिया। यहां से विकास का मन और बढ़ गया। उसने कॉन्ट्रैक्ट किलिंग वगैराह शुरू कर दी। उसने फिर 1993 में रामबाबू हत्याकांड को अंजाम दिया। फिर सिद्धेश्वर पांडेय हत्याकांड को अंजाम दिया। फिर राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की थाने में गोली मारकर हत्या कर दी थी।

हथियारों का शौकीन, जमीनों पर कब्जा करवानाफैक्ट्रियों से रंगदारी वसूलता है

लगातार हत्याएं लूट डकैती करने के बाद से उसका इलाके में अच्छा खासा दबदबा बन गया था। इसी के दम पर वह विवादित जमीनों की दलाली करने लगा। साथ ही साथ आसपास की फैक्ट्रियों से पैसे वसूलने लगा। जितनी बड़ी फैक्ट्री उतना बड़ा पैसा वसूली करता था।विकास हथियारों का शौकीन है। अवैध असलहे तो उसके घर में कईयों के पास होंगे। जब उसका गाड़ियों का काफिला निकलता था तो उसके साथ दस से पंद्रह लड़के रहते थे जो अलग अलग हथियारों से लैस रहते थे।

दो दशक से आतंक फैला रखा था

विकास दुबे का ही मामला देखें तो यह गए करीब दो दशक से कानपुर देहात और आसपास के इलाकों में कानून को चुनौती देता रहा है। इसके खिलाफ साठ मुकदमे दर्ज हैं फिर भी बेखौफ होकर उसने अपने गिरोह के साथ मिलकर आठ पुलिस वालों को गोलियों से भून दिया। जानकारों का कहना है कि इस दु:स्साहस के पीछे राजनेताओं, जिनमें कई सत्तारूढ़ पाले के भी हैं, का संरक्षण ही सबसे बड़ी वजह है।बताया जाता है कि जिस मामले में उसे गिरफ्तार करने पुलिस जा रही थी उसमें पर्दे के पीछे कुछ राजनेता यह सुनिश्चित कर रहे थे कि सम्मानजनक तरीके से आत्मसमर्पण हो जाए। इधर पुलिस वाले दलबल के साथ उसके गांव पहुंचे लेकिन शातिर विकास को इसकी भनक थी लिहाजा उसने रास्ते पर व्यवधान लगवाकर पुलिस टीम को रुकने पर मजबूर किया और छतों पर पहले से मौजूद उसके लोगों ने पुलिस वालों पर गोलियों की बौछार कर दी।

चौबेपुर में दुबे ने कैसे की 8 पुलिसवालों की हत्या

हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के खिलाफ जान से मारने की कोशिश की एक एफआईआर पर पुलिस की सख्ती और गुरुवार देर रात शुरू हुआ पुलिस ऑपरेशन शुक्रवार सुबह गमगीन माहौल में तब्दील हो गया।

उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक हिस्ट्रीशीटर अपराधी विकास दुबे  को पकड़ने गए 8 पुलिस कर्मी शहीद हो गए हैं, वहीं 7 घायल हुए हैं। इस घटना ने उत्तर प्रदेश को हिलाकर रख दिया है। हिस्ट्रीशीटर के खिलाफ जान से मारने की कोशिश की एक एफआईआर पर पुलिस की सख्ती और गुरुवार देर रात शुरू हुआ पुलिस ऑपरेशन शुक्रवार सुबह गमगीन माहौल में तब्दील हो गया।

दरअसल, चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव में एक शख्स ने हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे पर जानलेवा हमला करने की एफआईआर दर्ज कराई थी। देर रात महेश यादव, एसओ शिवराजपुर विकास दुबे के घर दबिश देने पहुंचते हैं। बताया जा रहा है कि इस दौरान विकास दुबे की एसओ से कहासुनी होती है और बदमाश पुलिस टीम से हाथापाई पर उतारू हो जाते हैं और असलहे छीन लेते हैं। इसके बाद एसओ आनन-फानन में सीओ बिल्हौर, देवेंद्र कुमार मिश्र को सूचना देते हैं और पुलिस टीम मंगाते हैं। सूचना के बाद सीओ बिल्हौर चार थानों की फोर्स लेकर मौके पर पहुंचते हैं। इनमें शिवराजपुर के साथ ही चौबेपुर, बिल्हौर, घाटमपुर की फोर्स शामिल है।

यहां पुलिस सीओ की अगुवाई में विकास के घर को चारों तरफ से घेर लेती है। विकास दुबे का मकान किले की तरह बना है। मकान में करीब 10 फुट ऊंची बाउंड्री और उसके उपर तारों की फेंसिंग लगी है। छापे के दौरान पुलिस टीम ने मकान का दरवाजा तोड़ा और अंदर बदमाशों को पकड़ने की कोशिश कर रही थी कि बदमाशों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी।

अचानक गोलियां चलने से पुलिस पार्टी में अफरा-तफरी मच गई। इस दौरान पुलिसकर्मी गिरते गए और पूरी पुलिस पार्टी बैकफुट पर आ गई। जब तक पुलिस संभलती बदमाश अंधेरे का लाभ उठाकर फरार हो गए. इसके बाद जब पुलिस संभली तो देखा कि सीओ बिल्हौर देवेंद्र कुमार मिश्र, एसओ शिवराजपुर महेश यादव सहित 8 पुलिसकर्मी मौके पर ही शहीद हो गए हैं। वहीं 7 अन्य पुलिसकर्मियों को गोली लगी है। घायलों को फौरन अस्पताल भेजा जाता है और शासन को सूचना दी जाती है।

पुलिस टीम पर एके-47 से फायरिंग

मौके से एके-47 के खोखे बरामद होने की बात सामने आ रही है। पुलिस अधिकारी भी बदमाशों द्वारा सेमी ऑटोमेटिक वेपन के इस्तेमाल की संभावना जता रहे हैं। प्रदेश के डीजीपी ओपी सिंह ने कहा है कि फॉरेंसिंक जांच के बाद ही इस पर कुछ कहा जा सकता है। ऐसा लग रहा है कि फायरिंग में सोफेस्टिकेटड वेपन का इस्तेमाल किया गया।

आसपास के मकानों से भी फायरिंग

मामले में डीजीपी एचसी अवस्थी ने बताया कि पुलिस टीम पर विकास दुबे के मकान के आसपास के मकानों से भी फायरिंग की गई। हालांकि ये अभी तक साफ नहीं हो सका है कि फायरिंग करने वाले कितने लोग थे। जांच की जा रही है उसके बाद कार्रवाई की जाएगी।

पुलिस रेड की मुखबिरी हुई

पूरे घटनाक्रम में पुलिस पर भी सवाल उठ रहे हैं कि आखिर कैसे पहले से ही विकास दुबे को पुलिस की दबिश की सूचना मिल गई। पूरा घटनाक्रम इस ओर इशारा कर रहा है कि जैसे विकास दुबे को पुलिस की दबिश की पूरी जानकारी थी। उसने किसी भी हद तक जाने की तैयारी कर रखी थी। देर रात जब पुलिस की टीमें उसके घर पहुंच गईं और उसके बचने का कोई रास्ता न निकला तो उसने जघन्य हत्याकांड को अंजाम दे दिया। सड़क पर रास्ता रोककर लगाई गई जेसीबी भी रेड की पूर्व सूचना होने की तस्दीक कर रही है।

कुछ घंटे बाद एनकाउंटर में विकास दुबे के दो रिश्तेदार मारे गए

वहीं इस एनकाउंटर के बाद पुलिस ने छापेमारी तेज कर दी और कुछ घंटे बाद ही उसे सफलता हाथ लगी। शुक्रवार सुबह पुलिस ने मुठभेड़ में विकास दुबे के दो रिश्तेदारों को मुठभेड़ में मार गिराया। ग्रामीणों ने प्रेम प्रकाश और अतुल दुबे के रूप में पहचाना है। यह दोनों ही विकास दुबे के रिश्तेदार हैं। पुलिस ने इनके पास से देर रात मुठभेड़ में लूटी गई पिस्टल भी बरामद की है। फिलहाल बाकी बचे हुए अपराधियों को पकड़ने के लिए लगातार धरपकड़ जारी है। आसपास के जनपदों की सीमाएं सील कर दी गई हैं और भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया है। गांव पर पीएसी तैनात कर दी गई है।

मुठभेड़ में शहीद हुए पुलिसकर्मी

1-देवेंद्र कुमार मिश्र,सीओ बिल्हौर,2-महेश यादव,एसओ शिवराजपुर,3-अनूप कुमार,चौकी इंचार्ज मंधना,4-नेबूलाल, सब इंस्पेक्टर शिवराजपुर,5-सुल्तान सिंह कांस्टेबल थाना चौबेपुर,6-राहुल ,कांस्टेबल बिठूर,7-जितेंद्र,कांस्टेबल बिठूर,8-बबलू कांस्टेबल बिठूर

मुठभेड़ में घायल पुलिसकर्मी

1-कौशलेंद्र प्रताप सिंह, एसओ बिठूर,2-अजय सिंह सेंगर, सिपाही बिठूर,3-अजय कश्यप, सिपाही शिवराजपुर,4- होमगार्ड जयराम पटेल,5-एसआई सुधाकर पांडे, चौबेपुर,6-शिव मूरत, सिपाही बिठूर,7-विकास बाबू, प्राइवेट व्यक्ति, चौबेपुर

यूपी में अपराधियों को सियासत का साथ

कानपुर देहात में बदमाशों से मुठभेड़ में 8 पुलिसकर्मियों के शहीद होने के मामले में जिस अपराधी विकास दुबे का नाम सामने आ रहा है वह यूपी में राजनीति व अपराध के नापाक गठजोड़ की एक और बानगी भर है।

उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात में बदमाशों से मुठभेड़ में एक डीएसपी समेत 8 पुलिसकर्मियों के शहीद होने के मामले में जिस अपराधी विकास दुबे का नाम सामने आ रहा है वह यूपी में राजनीति व अपराध के नापाक गठजोड़ की एक और बानगी भर है। यह ऐसा मर्ज है जिसने गए करीब दो-ढाई दशक से यूपी की सियासत को लगातार अपनी चपेट में लेते रहना जारी रखा है। राजनेताओं के संरक्षण में फले-फूले मन बढ़ अपराधियों ने पहले भी पुलिस वालों को अपना निशाना बनाया है। अतीत में जब-जब ऐसा हुआ, खासा हो-हल्ला मचा कि हालात सुधारने होंगे, लेकिन हुआ कभी कुछ नहीं। नतीजतन कानपुर देहात का वाकया अगली कड़ी के रूप में सामने है।

विकास दुबे के किलेनुमा घर में फंसकर शहीद हुए आठ पुलिसकर्मी, सीसीटीवी कैमरों से लैस है हर दीवार

कुख्यात अपराधी और यूपी मोस्ट वांटेड विकास दुबे उर्फ विकास पंडित का घर किले से कम नहीं है। शातिर दिमाग होने के कारण विकास पंडित का घर ऐसा बना है कि उसमें लगे तीन बड़े दरवाजे तीन दिशाओं में खुलते हैं। छत पर जाने के लिए दो जीना हैं। सभी द्वार पर दो-दो सीसीटीवी कैमरे भी लगे हैं।

इसके अलावा ऊंची-ऊंची चाहरदीवारी से कोई न आ सके लिए लिए कटीले तारों की बैरीकेटिंग भी की गई है। घर के भीतर कोई देख नहीं सकता है। लेकिन छतों से पूरे गांव को देखा जा सकता है। गुरुवार रात करीब एक बजे पुलिस की टीम विकास के घर के पास पहुंची तो घर से कुछ दूर रास्ते में जेसीबी को लगाकर रास्ता रोका गया था।

विकास दुबे की पकड़ने में जुटी एसटीएफ

इस घटना पर डीजीपी एचसी अवस्थी ने कहा कि हत्या के प्रयास मामले में दबिश देने गई टीम पर घात लगाकर फायरिंग की गई। एक सीओ, 1 एसओ, 1 चौकी इंचार्ज, 5 सिपाही शहीद हुए थे बाद में इलाज के दौरान गंभीर रूप से घायल एक और सिपाही ने दम तोड़ दिया। इसके अलावा 4 सिपाही घायल हैं। घायलों के उचित इलाज के निर्देश दिए गए हैं। आरोपी 7-8 के करीब हो सकते हैं। आरोपी विकास दुबे की गिरफ्तारी के लिए पड़ोसी जिलों की पुलिस को भी लगाया गया है। आरोपी की गिरफ्तारी में एसटीएफ को भी लगाया गया है। लखनऊ से एक फॉरेंसिक की टीम भी कानपुर पहुंच चुकी है। कानपुर देहात में एनकाउंटर के बाद जिले की सभी सीमाएं सील कर दी गई हैं। पूरे गांव में पुलिस का सर्च ऑपरेशन जारी है।

एक पैर में पड़ी थी रॉड, 500 मीटर भी पैदल नहीं चल सकता

कुछ सालों पहले उसने अपने दबदबे का इस्तेमाल करने के लिए पश्चिमी यूपी का रुख किया। सहारनपुर में किसी विवादित जमीन की दलाली खाने वहां पहुंचा था, लेकिन सामने वाली पार्टी उस पर भारी पड़ गई। जहां उसका पैर भी टूट गया था।बाद में उसके पैर में रॉड डाली गई थी। इसके बाद वह 500 मीटर भी पैदल नही चल सकता है।

यूपी के चर्चित माफियाओं से अलग है विकास दुबे का चरित्र

कानपुर एनकाउंटर के बाद क्या विकास दुबे यूपी के चर्चित माफियाओं की सूची में अगला नाम शामिल हो गया है? अपराधियों को बहुत करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार ऐसा नहीं मानते। तो आखिर कैसे अलग है विकास दुबे उत्तर प्रदेश के बाकी माफियाओं से?

कानपुर में पुलिस हत्याकांड करने वाले विकास दुबे के कारनामों की चर्चा सिर्फ यूपी में ही नहीं बल्कि पूरे देश में हो रही है। बहुत कम घटनाएं ऐसी होती हैं, जब कोई अपराधी पुलिस पर इतना बड़ा घातक हमला करे, जिसमें 8 पुलिसकर्मियों की जान चली जाए। तो क्या विकास दुबे यूपी के चर्चित माफियाओं की सूची में अगला नाम शामिल हो गया है? अपराधियों को बहुत करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार ऐसा नहीं मानते। तो आखिर कैसे अलग है विकास दुबे उत्तर प्रदेश के बाकी माफियाओं से?

वर्षों तक क्राइम रिपोर्टिंग कर चुके वरिष्ठ पत्रकार हेमंत तिवारी का कहना है कि विकास दुबे का चरित्र उत्तर प्रदेश के स्थापित माफियाओं से कतई भिन्न है। उत्तर प्रदेश के जितने भी चर्चित और स्थापित माफिया हैं या रहे, उन्होंने कभी पुलिस पर घात लगाकर हमला नहीं किया। उनकी मंशा कभी पुलिसकर्मियों की हत्या करने की नहीं रही बल्कि वे तो हमेशा पुलिस संरक्षण पाने की फिराक में लगे रहते थे। यही वजह रही कि जिस तरीके का हमला कानपुर में पुलिस पार्टी पर हुआ और 8 की जान चली गई, ऐसा बहुत कम ही उत्तर प्रदेश के इतिहास में देखने को मिला है।

विकास दुबे मनबढ़ टाइप बदमाश

विकास दुबे को पहले से पुलिस के आने की सूचना थी। फिर भी उसने बच निकलने के बजाय के बजाय पुलिसकर्मियों की योजनाबद्ध हत्या कर दी। हेमंत तिवारी कहते हैं कि ऐसा एक मनबढ़ अपराधी ही कर सकता है। विकास दुबे लोकल टाइप का बदमाश रहा है और उसके कृत्य ऐसे नहीं रहे हैं, जिससे उसका नाम यूपी के बड़े माफियाओं की सूची में शामिल किया जा सके। जिस तरह से उसने पुलिस पार्टी को निशाना बनाया है यह साफ है कि विकास दुबे का नाम जल्दी ही मिटने वाला है।

साजिश करके पुलिसकर्मी की हत्या का इतिहास नहीं

वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सिंह तो इस घटना से बेहद दंग है। राजकुमार सिंह ने बताया कि यूपी के किसी भी माफिया या बड़े अपराधी ने इस तरीके से साजिश करके पुलिसकर्मियों की हत्या कभी नहीं की। यह हत्याकांड नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की याद दिलाता है। पुलिस पार्टियों पर इस तरीके से एंबुश करके उनकी जान लेने का कृत्य नक्सलियों द्वारा ही देखी गई है। यूपी के इतिहास में किसी अपराधी द्वारा इतनी बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों की हत्या पहली बार सामने आई है। यहां तक की चंबल के बीहड़ों के डकैतों ने भी अमूमन ऐसा हत्याकांड अंजाम नहीं दिया है। उनसे मुठभेड़ में भी पुलिसकर्मियों की शहादत तब हुई, जब वे पुलिस के भागने की फिराक में गोली चलाए या फिर घिर जाने पर गोली चलाई।

मथुरा जवाहर बाग में एसपी सिटी की हत्या हुई थी

अपराधियों को नेताओं के संरक्षण व उस संरक्षण के जरिए खुद बाहुबलियों का राजनेता बन जाने के कई उदाहरण उत्तर प्रदेश में हैं और ऐसे मामलों में पुलिस वालों की पहली भी शहादत हो चुकी है। मथुरा के जवाहरबाग पर वर्षों से कब्जा जमाए बैठे रामवृक्ष यादव को भी राजनेताओं व सत्ता के करीबी लोगों के संरक्षण का ही गुमान था कि बाग को खाली करवाने पहुंची पुलिस टीम पर उसने हमला कर दिया था जिसमें मथुरा के एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी व एक थानाध्यक्ष संतोष यादव की मौत हो गई थी।

कई पुलिस वाले घायल हुए थे। बाद में पुलिस से मुठभेड़ में रामवृक्ष भी मारा गया था। कानपुर के विकास दुबे की ही तरह नब्बे के दशक में राजनीतिज्ञों के संरक्षण में उभर कर दुर्दांत अपराधी बने श्रीप्रकाश शुक्ला ने लखनऊ में एक सब इंस्पेक्टर की गोली मारकर हत्या कर दी थी। यह वह दौर था जब श्री प्रकाश से नज़दीकियों के लिए राजनेताओं का एक तबका लालायित रहता था। श्रीप्रकाश पुलिस से एनकाउंटर में मारा गया।  ऐसा कभी नहीं हुआ है कि किसी अपराधी को पता हो कि यहां पुलिस आ रही है और घात लगाकर उसने पुलिसकर्मियों की हत्या की हो। यूपी के माफियाओं को यदि कभी इस बात की भनक लग भी गई कि पुलिस उसका एनकाउंटर करने आ रही है तो वे पुलिस पर हमला करने के बजाए भाग निकलने की हमेशा कोशिश करते रहे हैं।

पुलिस की क्या है रणनीति

कानपुर देहात का वाकया हो या जवाहरबाग या श्रीप्रकाश शुक्ला का, इनमें यह भी दिखता रहा है कि पुलिस ने भी तभी पूरे जोरशोर से पलटवार किया जब अपराधी ने पुलिस को ही निशाना बना दिया। नि:संदेह प्रत्येक पुलिस वाले की जान अनमोल है और किसी की भी शहादत बेहद अफसोसनाक, लेकिन यूपी में अपराधियों का खौफ आम लोगों पर चलना जारी रहता है, इसपर निर्णायक लगाम लगाने को पुलिस तभी तत्पर होती है जब अपराधी पुलिस पर ही हमलावर हो जाता है। राजनेताओं के दवाब में शायद पुलिस की यह मजबूरी होती हो या कई मामलों में खुद ही नजरअंदाज करने की प्रवृत्ति भी ऐसे अपराधियों का हौसला बढ़ाती रही है।

मसलन एक जमाने में बुंदेलखंड की राजनीति में भरपर दखल रखने वाला दुर्दांत डकैत ददुआ। यह दस्यु भी राजनेताओं के संरक्षण में ही लगातार ताकतवर बनता चला गया. इस हद तक कि कुछ राजनेनेताओं की ही आंखों का किरकिरी बन गया। पुलिस से एनकाउंटर में ददुआ के मारे जाने के बाद जब यूपी पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स के सदस्य जंगल के रास्ते लौट रहे थे तो इलाके के एक और कुख्यात डकैत ठोकिया ने एसटीएफ की गाड़ी पर हमला कर एसटीएफ के आधा दर्जन सदस्यों को मार डाला था। ददुआ की तरह ठोकिया भी राजनीतिज्ञों के संरक्षण में लगातार ताकत पाता रहा।

प्रतापगढ़ में डिप्टी एसपी की हत्या हुई थी

राजनीति में सक्रिय इलाकाई बाहुबलियों से संरक्षण पाकर बेखौफ बने अपराधियों के हौसले का ही नतीजा था कि प्रतापगढ़ के कुंडा में साल 2013 में एक डिप्टी एसपी जियाउल हक की हत्या कर दी गई थी। हत्या भीड़ ने की थी, लेकिन इलाके के जानकारों का मानना है कि भीड़ को उकसाने के पीछे इलाके में राजनीति और अपराध का गठबंधन ही काम कर रहा था। ऐसे ही एक वाकए में साल 2018 में बुलंदशहर में एक इंस्पेक्टर सुबोध सिंह को भी जान गंवानी पड़ी थी।

भारत का वो बड़ा क्रिमिनल जिसने 97 पुलिस वालों को मारा था

कानपुर में बदमाश विकास दुबे को पकड़ने गई पुलिस पर जिस तरह हमला हुआ, उसने कुख्यात वीरप्पन की याद दिला दी, जो उसे पकड़ने जाने वाली हर पुलिस टीम पर हमला कराकर उन्हें खत्म कर देता था. एक बार उसने 22 पुलिसवालों को उड़ा दिया था। जिसमें आधिकारिक तौर पर 97 पुलिस वालों की जान गई थी।बाद में हालाकि वो एक मुठभेड़ में मारा गया।

योगी ने भी दिखाया सख्त रुख

सीएम योगी ने कानपुर के रीजेंसी हॉस्पिटल में घायल पुलिसकर्मियों से मुलाक़ात की इस दौरान उनके साथ डिप्टी सीएम केशव मौर्य भी मौजूद रहे। इसके बाद पुलिस लाइन पहुंच कर शहीदों के पार्थिव शरीर पर फूल माला अर्पित कर श्रद्धांजलि और परिजनों को आर्थिक सहायता का ऐलान किया। इससे पहले 8 पुलिसकर्मियों के शहीद होने पर मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने बेहद सख्‍त रुख अपनाते हुए ट्वीट किया था, 'कर्तव्‍यपथ पर अपना सर्वस्‍व न्‍योछावर करने वाले 8 पुलिसकर्मियों को भावभीनी श्रद्धांजलि। शहीद पुलिसकर्मियों ने जिस अपरिमित साहस और अद्भुत कर्तव्‍यनिष्‍ठा के साथ अपने दायित्‍वों का निर्वहन किया है, उत्‍तर प्रदेश उसे कभी नहीं भूलेगा। उनका यह बलिदान व्‍यर्थ नहीं जाएगा।' इसके साथ ही योगी आदित्यनाथ ने शहीद पुलिसकर्मियों के परिजन को एक एक करोड़ रुपये के मुआवजे और परिवार से एक व्यक्ति को नौकरी का वादा भी किया है।

दुबे की मां ने कहा- अगर पकड़ लो तो जान से मार देना

विकास दुबे की मां सरला देवी ने कहा कि बेटे ने जो किया वो बहुत गलत था, यदि वो ऐसे ही भागता रहा तो पुलिस एक दिन उसका एनकाउंटर कर देगी, उसे समर्पण कर देना चाहिए। अगर पकड़ लो तो जान से मार देना।

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