श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब ...
उमड़ा आस्था का सैलाब
कानपुर में चकेरी के ओम पुरवा स्थित नई बस्ती में संकट मोचन हनुमान मंदिर में लगे नीम के पेड़ की जड़ पर गुरुवार सुबह एक आग की जोत जलती मिली। इसके बाद मोहल्ले के लोग इसे आस्था का चमत्कार मानकर पूजा-अर्चना करने लगे। यह बात आसपास के मोहल्लों में जंगल में आग की तरह फैल गई।
आस्था के सैलाब में लोगों ने माथा टेकना शुरू कर दिया। जोत जलने का सिलसिला चल रहा है। चकेरी के ओम पुरवा नई बस्ती में करीब 35 साल पुराना श्री संकट मोचन हनुमान मंदिर है। इसमें करीब 4 दशक पुराना नीम का पेड़ है। गुरुवार सुबह नीम के पेड़ की जड़ के पास अचानक जोत जलने लगी। यहां पूजा करने आईं मोहल्ले की रीना की नजर पड़ी। उनकी जानकारी पर लोग जमा होने लगे। मोहल्ले के सोनू, छोटू, शकुंतला ने बताया इससे पहले नवंबर में भी अचानक जोत जलते मिली थी। तब काली माता की मूर्ति के आगे जली थी।
यह बात धीरे-धीरे चर्चा का विषय बन गई। आसपास के लोग जमा हो गए और यहां पूजा-अर्चना का सिलसिला शुरू हो गया। इसके साथ लोगों ने फोटो, वीडियो बनाना शुरू कर दिया। उनका कहना है कि यह आशीर्वाद है जो उन्हें जोत के रूप में मिल रहा है।
वैज्ञानिक रूप से जोत का यह हो सकता है कारण
पुराने पेडों में राल या रेजिन गोंद जैसा हाइड्रोकार्बन द्रव्य होता है। जो वृक्षों की छाल और लकड़ी से निकलता है। वैसे यह रेजिन अन्य पेड़ों की तुलना में चीड़ जैसे कोणधारी (कॉनिफरस) पेड़ों से अधिक मात्रा में निकलता है। रेजिन का प्रयोग गोंद, लकड़ी की रोगन (वार्निश), सुगंध और अगरबत्तियां बनाने के लिए सदियों से होता आया है। कभी-कभी रेजिन जमकर पत्थरा जाता है और बड़े डलों का रूप ले लेता है।जो समय के साथ जमीन में दफ्न हो जाते हैं। सालों साल बाद यह कहरुवे (ऐम्बर) के नाम से बहुमूल्य पत्थरों की तरह निकाले जाते हैं और आभूषणों में इस्तेमाल होते हैं। बताया जाता है कि आग के संपर्क में आने से इसमें आग लग जाती है और यह अगर लगातार जलती रहे, तो पेड़ का जीवन नष्ट हो सकता है। हम यह मान सकते हैं कि यह गोंद पेड़ की अपनी सुरक्षा की ताकत होती है।
Leave a Reply